Mahatma Gandhi Ji : Sach Vs Jhuth. Satya Ahimsa Philosophy of GandhiJi, Truth Vs Lies:
 
‘सत्य के समान कोई तप नहीं है एवं झूठ के समान कोई पाप नहीं है ।’
 
जिसके हृदय में सच्चाई है, उसके हृदय में स्वयं परमात्मा निवास करते हैं ।
 
एक बार स्कूल में विद्यार्थियों के अंग्रेजी की परीक्षा के लिए कुछ अंग्रेज इन्स्पेक्टर आये हुए थे ।
 
उन्होंने कक्षा के समस्त विद्यार्थियों को एक-एक कर पाँच शब्द लिखवाये ।
 
कक्षा के अध्यापक ने एक बालक की कॉपी देखी जिसमें एक शब्द गलत लिखा था ।
 
अध्यापक ने उस बालक को अपना पैर छुआकर इशारा किया कि वह पास के लडके की कॉपी से अपना गलत शब्द ठीक कर ले ।
 
ऐसे ही उन्होंने दूसरे बालकों को भी इशारा करके समझा दिया और सबने अपने शब्द ठीक कर लिये, पर उस बालक ने कुछ न किया ।
 
इन्स्पेक्टरों के चले जाने पर अध्यापक ने डाँटा और कहा कि ‘इशारा करने पर भी अपना शब्द ठीक नहीं किया ? कितना मूर्ख है !’
 
बालक ने कहा : ‘‘अपने अज्ञान पर पर्दा डालकर दूसरे की नकल करना सच्चाई नहीं है ।”
 
अध्यापक : ‘‘तुमने सत्य का यह व्रत कब लिया और कैसे लिया ?”
 
‘‘राजा हरिश्चन्द्र के नाटक को देखकर, जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिए अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को बेचकर अपार कष्ट सहते हुए भी सत्य की रक्षा की थी ।”
 
मित्रगण बोले : ‘‘भाई ! नाटक तो नाटक होता है उसे जीवन में घटाना ठीक नहीं ।‘‘

बालक ने कहा : ‘‘पक्के इरादे से सब कुछ हो सकता है । मैंने उसी नाटक को देखकर जीवन में सत्य पर चलने का निश्चय किया है ।”

यह बालक कोई और नहीं बल्कि मोहनलाल करमचंद गाँधी ही थे ।

 सीख : सत्य के आचरण से अंतर्यामी ईश्वर प्रसन्न होते हैं, सत्यनिष्ठा दृढ होती है एवं हृदय में ईश्वरीय शक्ति प्रगट हो जाती है ।

सत्यनिष्ठ व्यक्ति के सामने फिर चाहें कैसी भी विपत्ति आ जाए, वह सत्य का त्याग नहीं करता । 

संकल्प : ‘हम भी अपने जीवन में सत्यव्रत और भगवन्नाम का आश्रय लेकर उस आत्मा के ज्ञान को पायेंगे और दूसरों को भी इसका लाभ दिलायेंगे ।