तब क्या हुआ जब अंग्रेज न्यायाधीश ने वहाँ की मुख्य सड़क पर तिरंगा झण्डा लेकर चलने पर पाबंदी लगा दी…!!!!
कुछ विद्यार्थी पढ़ने के लिए अपने गाँव से दूसरे गाँव पैदल जा रहे थे । कुछ दूर जाने के बाद साथियों ने देखा तो पता चला कि एक छात्र खेत की मेंड पर बैठा हुआ है । सभी विद्यार्थियों को लगा कि वह कुछ कर रहा है ।
उन्होंने उस लड़के को आवाज लगायी : ‘‘तुम क्या कर रहे हो ?
वह बोला : ‘‘ठहरो, मैं अभी आता हूँ ।” थोड़ी ही देर में वह उनसे आ मिला और सहज भाव से बोला : ‘‘रास्ते में एक पत्थर ऊपर निकला था,उससे अँधेरे में न जाने कितनों के पैरों में चोट लगे और रुकावट पड़े ऐसी चीज को हटा देना ही उचित होता है । अतः मैं उसे उखाड़ रहा था ।”
मानवीय संवेदना से भरे हृदयवाला यही विद्यार्थी आगे चलकर देश व संस्कृति का एक महान सेवक बना । भारत पर जब अंग्रेज कब्जा कर बैठे थे तब की बात है । एक बार नागपुर में एक अन्यायी अंग्रेज न्यायाधीश ने वहाँ की मुख्य सड़क पर तिरंगा झंडा लेकर चलने पर पाबंदी लगा दी थी । मानवीय संवेदनाओं से भरा वही बहादुर छात्र जब बड़ा हुआ तो उसने इस कानून के विरुद्ध आवाज उठायी और कहा : ‘‘देश हमारा, जमीन हमारी, झंडा हमारा, फिर क्या कारण है कि उसे लेकर हम कहीं नहीं जा सकते ? उन्होंने लोगों को जागरूक करके आंदोलन छेड़ दिया और उसका नेतृत्व किया ।
अपना विरोध दर्शाने के लिए कुछ लोग रोज उस सड़क पर तिरंगा झंडा लेकर निकलते और गिरफ्तारी देते । यह क्रम बहुत दिनों तक चला । अंत में तंग आकर सरकार को समझौता करना पड़ा । इस विजय उत्सव पर लोगों ने सड़कों पर तिरंगा झंडा लेकर जुलूस निकाला । अन्याय के खिलाफ आवाज उठानेवाले वे वीर सपूत थे – सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel)
सीख : परहित के लिए थोड़ा भी काम करने से भीतर की शक्तियाँ जागृत होती हैं । दूसरों के मंगल के विचारमात्र से हृदय में सिंह के समान बल आ जाता है । अन्याय के सामने कभी नहीं झुकना चाहिए ।