रामजी की चिड़िया, रामजी का खेत । 
 खा ले मेरी चिड़िया, तू भर भर पेट ।। 
 -पूज्य संत श्री आशारामजी बापू 

एक समय आचार्य विनोबा भावे ने “भूदान यज्ञ” के लिए पदयात्रा शुरू की थी।

प्रात:काल के समय सूरज निकलने की तैयारी थी और पक्षियों का मीठा कलरव सुनायी दे रहा था ।

किसी खेत में ज्वार की फसल लहलहा रही थी और पक्षी मजे से ज्वार चुग रहे थे ।

मार्ग के इस दृश्य को देखकर विनोबा भावे के हृदय में हुआ : ‘किसान कितना आलसी है !’

पक्षी जुवार चुग रहे हैं और वह अभी तक रखवाली करने नहीं आया है !”

ऐसा सोचते हुए वे थोड़ा आगे बढ़े तो देखा कि किसान एक स्थान पर बैठे-बैठे गा रहा था :

” संत मिलन को जाइये तजि मोह माया अभिमान ।
ज्यों-ज्यों पग आगे धरे कोटि यज्ञ समान ।।”

किसान को ये पंक्तियाँ गाते देखकर विनोबा भावे ने सोचा कि “यह किसान तो साधु जैसा लगता है ।”

अतः उन्होंने पास जाकर कहा :”जय जय सीताराम”

किसान : “जय जय सीताराम बाबाजी !”

विनोबा भावे :”यह खेत तुम्हारा है ?”

किसान :”नहीं, यह खेत मेरा नहीं है ।”

यह खेत पहले दूसरे के नाम पर था, उसके पहले भी किसी दूसरे के नाम पर था, कुछ वर्षों के बाद किसी दूसरे के नाम पर होगा । यह खेत मेरा कैसे हो सकता है ?”

लोग कहते हैं “यह मेरा है.. वह मेरा है..” लेकिन आज तक किसी का कुछ भी नहीं रहा है । यह समझ उस किसान को थी ।

एक साधारण से दिखने वाले किसान का इतना ऊँचा ज्ञान देखकर विनोबा भावे ने पुनः कहा : “भैया ! यह खेत किसी का नहीं है, यह बात तो ठीक है लेकिन व्यवहार के अनुसार तो सुबह आकर खेत की रखवाली करनी चाहिए न !

तुम यहाँ बैठकर भजन गा रहे हो और पक्षी आकर मजे से दाने चुग रहे हैं । यदि पक्षी दाना चुग गये तो तुम्हारे लिए क्या बचेगा ?”

किसान : “पक्षी दाने चुग रहे हैं इसीलिए तो मैं यहाँ पर बैठा हूँ । वे बेचारे पूरी रात के भूखे होंगे । वे जुवार के दाने के भूखें हैं, उन्हें जुवार चुगने दो और मैं भक्ति का भूखा हूँ इसलिए मुझे भक्ति के गीत गाने दो । बाद में मैं उन्हें भगाऊँगा ।”

“क्या तुम रोज ऐसा ही करते हो ?”

“हाँ ! मैं रोज ऐसा ही करता हूँ और पक्षी भी ऐसा ही करते हैं ।”

“इस प्रकार रोज तुम्हारे कितने दाने कम हो जाते होंगे ?”

किसान :”ये सब हिसाब करने की मुझे जरूरत नहीं है । जो परमात्मा मुट्ठी भर जुवार में से मन भर जुवार पैदा कर सकता है, वही परमात्मा पक्षियों को भी चेतना देता है । पूरा हिसाब भी वही रखे ,मैं क्यों हिसाब रखूँ ?”