A Short Story of Ganesh Shankar Vidyarthi from his Biography in Hindi: एक बार सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता-सेनानी एवं पत्रकार श्री गणेश शंकर विद्यार्थी अपने एक सहयोगी के साथ रेल में यात्रा कर रहे थे ।

रात में उनकी आँख खुली तो देखा कि सहयोगी के पास ओढ़ने के लिए पर्याप्त कपड़ा नहीं है और वह ठंड से सिकुड़ रहा है । गणेश शंकर ने अपना कम्बल उसे ओढ़ा दिया और स्वयं हलकी-सी चादर लेकर सो गये ।

प्रातः आँख खुलने पर सहयोगी ने देखा कि विद्यार्थी जी सर्दी से सिकुड़े हुए लेटे हैं । उन्हें नींद तो आयी नहीं थी, बस ऐसे ही लेटे हुए थे ।

विद्यार्थी जी ने सहयोगी से पूछा : “कहो बंधु ! रात को नींद तो ठीक से आ गयी थी न ?”

उसने सकुचाते हुए कहा : “आप रात भर सर्दी में ठिठुरते रहे और… ।”

विद्यार्थी जी बीच में ही टोकते हुए बोले : “अरे कुछ नहीं, मुझे तो ऐसे ही रहने की आदत है ।”

कर्तव्य-पालन एवं संस्कृति-रक्षा के लिए फौलाद-सा सीना रखने वाले इन बहादुर का हृदय अपने सहयोगियों के लिए भीतर मोम से भी अधिक तरलता सँजोये हुए था ।

पूज्य बापूजी कहते हैं : “हर दिल को स्नेह,सहानुभूति, प्रेम और आदर की आवश्यकता होती है । अपने साथियों की व्यक्तिगत या घरेलू समस्याओं के प्रति सहानुभूति रखकर यथाशक्ति उनकी सहायता करना दक्ष नेतृत्व का चिह्न है ।”

➢ लोक कल्याण सेतु, नवम्बर 2015