- एक न्यायाधीश के पास एक बार ऐसा मुकदमा आया जिसमें दो धनी व्यक्तियों के बीच झगड़ा था और मुकदमा जीतने वाले को बहुत सारी संपत्ति मिलने वाली थी ।
- उसमें से एक के मन में आया कि न्यायाधीश को प्रसन्न कर लूँ तो निर्णय मेरे पक्ष में हो जायेगा । वह एक रात्रि को एक लाख रूपये लेकर न्यायाधीश के घर पहुँचा और न्यायाधीश से बोला :”साहब ! आपके लिए भेंट लाया हूँ, लाख रूपये हैं ! आपकी अदालत में वह हमारा संपत्ति-संबंधी जो मुकदमा चल रहा है न, उसका निर्णय जरा मेरे पक्ष में कर दीजियेगा ।”
- यह सुनते ही न्यायाधीश ने कहा :”न्याय को गंदा करने आयें हैं आप ? ले जाइये ये रूपये, न्याय जैसे होता है वैसे ही होगा ।”
- रूपये देनेवाले को अपने धन का अभिमान था । फिर हाथ में आये हुए लाख रूपये कोई छोड़ दे, यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था ।
- उसने कहा :”साहब ! ये कोई सौ-दो सौ रूपये नहीं हैं, लाख रूपयें हैं ! ऐसा लाख रूपये देनेवाला दूसरा कोई नहीं मिलेगा ।” इस पर न्यायाधीश ने उसे डाँट दिया और कहा :”जाओ, उठा ले जाओ इस मैल को यहाँ से ।”
- यह सुनकर वह व्यक्ति एक भी शब्द बोले बिना रूपये लेकर चुपचाप अपने रास्ते चला गया ।
- ये ईमानदार और सत्यनिष्ठ न्यायाधीश थे गुजरात प्रांत के अंबालाल साकरलाल देसाई । वे कहा करते थे कि ‘न्याय का कार्य भगवान का है इसमें जरा भी पक्षपात नहीं किया जा सकता, जरा भी लापरवाही नहीं बरती जा सकती । पहले दोनों पक्षों की बैटन को अच्छी तरह सुनकर फिर न्याय की तराजू में उन्हें तौलना चाहिए । न्याय की डंडी सम रहनी चाहिए, जरा भी ऊँची-नीची नहीं होनी चाहिए ।
- न्याय-व्यवस्था को दोषरहित बनाये रखने के लिए ऐसे ईमानदार और सच्चे न्यायाधीशों की देश को सदा आवश्यकता है, ताकि साधारण जनमानस का न्याय-व्यवस्था पर विश्वास बना रहे ।