[Childhood of Vidyasagar in Hindi]
सच्ची लगन व दृढ़ पुरुषार्थ का संदेश देती हुई यह कहानी बच्चों को अवश्य सुनाएँ।
एक होनहार बालक था।
घर में आर्थिक तंगी… पैसे-पैसे को मोहताज… न किताबें खरीद सके न विद्यालय का शिक्षण शुल्क भर सके…. ऐसी स्थिति फिर भी विद्याप्राप्ति के प्रति उसकी अद्भुत लगन थी ।
पिता की विवशता को देख के उसने अपनी पढ़ाई के लिए खुद ही रास्ता निकाल लिया।
आसपास के लड़कों की पुस्तकों के सहारे उसने अक्षर-ज्ञान प्राप्त कर लिया तथा एक दिन कोयले से जमीन पर लिख के पिता को दिखाया। पिता ने विद्या के प्रति बच्चे की लगन देख के तंगी का जीवन जीते हुए भी उसे गाँव की पाठशाला में भर्ती करा दिया।
विद्यालय की सभी परीक्षाओं में उसने प्रथम स्थान प्राप्त किया। आगे की पढ़ाई के लिए उसने माता-पिता से आशीर्वाद माँगा तथा कहा कि “आप मुझे किसी विद्यालय में भर्ती करा दें फिर मैं आपसे किसी प्रकार का खर्च नहीं माँगूंगा।”
कोलकाता के एक संस्कृत विद्यालय में उसने प्रवेश लिया और अपनी लगन व प्रतिभा से शिक्षकों को प्रसन्न कर लिया। उसका शिक्षण शुल्क माफ हो गया।
इस बालक ने केवल पेटपालू लौकिक विद्या को ही सब कुछ नहीं माना अपितु सर्वोपरि विद्या आत्मविद्या को आदर व रुचि पूर्वक पाने हेतु प्रयास किये ।
ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उसने इतना परिश्रम किया कि १९ वर्ष की आयु तक वह व्याकरण, स्मृति, वेद-शास्त्र तथा अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों के ज्ञान में निपुण हो गया।
आगे चलकर यही बालक सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं विद्वान ईश्वरचंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) के नाम से सुविख्यात हुए।
ये ‘यथा नाम तथा गुण’ थे।
सीख : आत्मनिर्भरता, परोपकारिता, परदुःखकातरता, करुणा, चंद्रमा-सा सौम्य व शीतलताप्रद स्वभाव एवं आत्मविद्या के अध्ययन से सुशोभित उदात्त व्यक्तितत्व के धनी आपने यह प्रत्यक्ष कर दिखाया कि लक्ष्य को पाने के दृढ़ निश्चय और पुरुषार्थ की कितनी भारी महिमा है।
🙌🏻संकल्प : हम भी सच्ची लगन से दृढ़ पुरुषार्थ करेंगे।