आज हम जानेंगे : एक छोटे से बालक ने कैसे एक डाकू का हृदय परिवर्तित कर दिया….
एक बालक शिक्षा के लिए निकट के शहर में जा रहा था । आवश्यक खर्च के लिए उसकी माँ ने 50 रुपये उसकी कमीज के अंदर सी दिये ताकि दूसरा कोई पैसे देख न सके । गाँव के कुछ व्यापारियों के साथ बालक घर से निकला ।
रास्ते में डाकुओं ने व्यापारियों का सब धन लूट लिया।
डाकुओं के सरदार ने पूछा : ‘‘ऐ बालक ! तेरे पास कुछ है की नहीं ?
विद्यार्थी बालक निर्भय होकर बोला : ‘‘हाँ, मेरे पास 50 रुपये हैं।”
‘‘अपने पैसे जल्दी निकाल ।” बालक ने कमीज फाड़कर रुपये सरदार के हाथ पर रख दिये और हँसते हुए बोला : ‘‘चाचाजी ! ये लीजिये लेकिन पहले थोड़ा विचार कीजिये कि जिस शरीर के लिए आप इतना सब कर रहे हो, उसकी आयुरूपी पूँजी को कालरूपी लुटेरा तो सतत लूट रहा है । जिस दिन वह लुटेरा आपको पूरी तरह लूटेगा उस दिन यह सब यहीं छूटेगा ।
मेरे प्यारे चाचाजी ! सत्संग के ज्ञान और भगवान के नाम की लूट मचाइये, जिस धन को काल भी नहीं लूट सकता !
बालक की आँखों से निर्दोषता,निर्मलता,सहजता और जीवन की गहरी सच्चाई टपक रही थी ।
सरदार की आँखें बालक की आँखों में एकटक निहारते हुए कुछ खो-सी गयीं । सरदार सोचने लगा, ‘यह छोटा-सा बालक कितनी सत्य और गूढ़ बात बोलता है ! इसके पास किसी भी प्रकार का कोई भी रक्षक हथियार नहीं है और यह इतना निर्भीक, निश्चिंत ! और मेरे पास इतने घातक हथियार तथा इतने बलिष्ठ साथियों का दल होते हुए भी मेरा हृदय काँप रहा है, यह कैसी अजीब बात है !
वह पाषाण-हृदय पिघल गया,आँखों से आँसू छलक आये। बालक को हृदय से लगाकर भरे कंठ से वह बोला : ‘‘पुत्र ! तू कह देता, ‘मेरे पास रुपये नहीं हैं । तेरा कुछ नहीं बिगड़ता, फिर भी तूने सच कहा । तुझे डर नहीं लगा ? उस विशालकाय क्रूरमूर्ति के आँसू पोंछते हुए वह भारत का नन्हा लाल बोला : ‘‘चाचा ! मेरी माँ मुझे रोज सत्संग में ले जाती थी और उसने अपने साथ मुझे भी गुरुमंत्र की दीक्षा दिलायी।
सत्संग और गुरुमंत्र के जप से मेरी यह समझ दृढ हो गयी है कि सब प्रभुमय हैं… आप भी ! फिर मैं डर किस बात का रखूँ ?
डाकुओं का विशाल दल बड़े अचरज से उस बालक को देख रहा था । सरदार ने साथियों की ओर नजर घुमायी । सभी ने सरदार की आँखों के भावों में अपने भाव मिलाते हुए गर्दन हिलाकर हामी भरी । तत्काल लूटा हुआ सारा धन व्यापारियों को लौटाया गया ।
डकैतों के सरदार ने उस बालक को वचन दिया कि वे सब अब डकैती छोड अच्छाई, भलाई, सत्संग व भगवन्नाम का रास्ता अपनाकर नेक जीवन जियेंगे । सभी व्यापारी बालक को चूमने लगे ।
उनके चेहरे पर धन-वापसी से भी अधिक संतोष इस बात का छलक रहा था कि जो कभी न लुट सके ऐसे सत्संग व प्रभुनाम रूपी धन की खबर बतानेवाला यह बालक रत्न हमें मिला है ।
एक सत्संगी, गुरुदीक्षित बालक ने पूरे गाँव एवं डाकुओं तक को अपने गुरुदेव के सत्संग-दीक्षा का लाभ दिलाया और मिटने व छूटने वाले धन से प्रीति छुड़ाकर अमिट,अछूट धन में प्रीति की दृष्टि दी । धन्य है वह बालक व उसकी माँ !