बापूजी को बचपन से ही सादगी प्रिय है। सफेद वस्त्र, सात्त्विक भोजन पसंद है। पूज्यश्री कभी-कभी व्रत भी करते थे और उसमें केवल फल या दूध लेते थे। बचपन में भी सफेद कुर्ता-पजामा पहनते थे। आज भी बापूजी को वैसा ही सादा जीवन और सादा रहन-सहन, खान-पान पसंद है। भक्तों के प्रेमवश, उनके आग्रह पर थोड़ी देर के लिए रंग-बिरंगी पोशाकें, फूलहार, पगड़ी आदि पहन लेते हैं।
● दूसरों को बाँटकर खाना यह सद्गुण पूज्यश्री में बचपन से ही है। बालक आसुमल को कोई भी चीज मिलती तो वे उसे दूसरों में बाँटकर खाते थे। स्वयं खाने से पहले गाय को भी खिलाते थे। गायों के प्रति पूज्य बापूजी का बचपन में भी बड़ा स्नेह था और आज तो हम सभी प्रत्यक्ष देखते हैं।
● अन्वेषण का गुण…
पूज्यश्री में बचपन से ही अन्वेषण का गुण था। वैसे सामान्य तौर पर यह गुण सभी बच्चों में होता है परंतु बालक आसुमल में विशेष रूप से था। कोई भी बात, किसी भी वस्तु के बारे में आप गहराई से सोचते, पूछते और जाँचते थे ‘क्या है, कैसे है, क्यों है ?…’ आदि। इस गुण ने आपको ‘मैं कौन हूँ ? ईश्वर कैसा है, कहाँ है ?…’ ऐसे जिज्ञासा भरे प्रश्नों को जन्म देकर परमात्म-पथ पर आगे बढ़ने में मदद की।
● प्रसन्नता के धनी…
बालक आसुमल से जो भी मिलता था, उनको देखकर प्रसन्न हो जाता था। बोलता कि ‘यह बालक कितना हँसमुख, प्रसन्नचित्त है !’ इसलिए लोग आपको हँसमुखभाई भी कहते थे। आज भी बापूजी कहते हैं कि “मुस्कराना मेरी आदत है, प्रसन्न रहना मेरा स्वभाव है और तुम्हें जगाना मेरा उद्देश्य है।”
आसुमल प्रसन्न मुख रहते, शिक्षक हँसमुख भाई कहते ।