A Short Story of Trailanga Swami from Biography in Hindi:
सन् 1880 ई. में उज्जैन-नरेश काशी-नरेश के अतिथि हुए ।
काशी-नरेश घाट किनारे का सौंदर्य दिखाने के लिए उन्हें अपने साथ बजरे (एक प्रकार की बड़ी और पटी हुई नाव) पर बिठाकर दशाश्वमेध घाट आये । घाट पर कुछ समय रुकने के बाद वे विंदुमाधव धरहरा के पास आकर रुके । यहाँ से आगे बढ़ते ही उन्हें तैलंग स्वामी घाट के किनारे उलंग टहलते हुए दिखायी दिये । काशी-नरेश ने उज्जैन-नरेश को उनकी कई चमत्कारिक घटनाएँ सुनायीं ।
उज्जैन-नरेश ने कहा : ‘‘अगर स्वामीजी नाव पर आना पसंद करें तो निकट से उनके दर्शन कर लूँ और परमार्थ-चर्चा की जाय ।’’
एकाएक स्वामीजी उड़ते हुए नाव में आकर बैठ गये और बोले : ‘‘कहिये राजन् ! मुझसे क्या पूछना चाहते हैं ?’’
सभी आश्चर्य से स्वामीजी को देखने लगे । स्वामीजी ने उनकी अनेक शंकाओं का समाधान किया ।
सहसा बाबाजी ने काशी-नरेश के हाथ से तलवार लेकर उलट-पुलटकर देखने के बाद गंगाजी में फेंक दी । नरेश क्रोधित हो गये ।
बाबाजी ने मुस्कराते हुए नदी में हाथ डाला और दो तलवारें देते हुए कहा : ‘‘जो तलवार तुम्हारी हो, उसे पहचानकर ले लो ।’’
वे न पहचान सके तो बाबाजी ने एक तलवार उन्हें दी और दूसरी गंगाजी में फेंकते हुए कहा : ‘‘अभी जीवात्मा-परमात्मा, मुक्ति के बारे में जिज्ञासा प्रकट कर रहे थे और अब क्षणभर में ही सारा विवेक-वैराग्य समाप्त हो गया । धिक्कार है ऐसे जीवन पर !’’
इतना कहकर वे नदी में कूद पड़े । दोनों राजा देर तक उनके निकलने की प्रतीक्षा करते रहे ।
एक मल्लाह ने कहा : ‘‘महाराज ! शाम हो गयी है, लौट चलिये । स्वामीजी तो 2-2 दिन तक पानी के भीतर ही रह जाते हैं, बाहर नहीं निकलते ।’’
थोड़ी देर तक इंतजार करने के बाद स्वामीजी के उद्देश्य से गंगाजी को नमस्कार कर काशी-नरेश ने माफी माँगी और दोनों नरेश वहाँ से चले गये ।
~ (ऋषि प्रसाद : जनवरी 2005)