आज हम जानेंगे : विद्यार्थियों में गीता ग्रंथ के अध्ययन से सच्चाई, निर्भयता व आत्मा की स्वतंत्रता के संस्कार हृदय में दृढ़ हो सकते हैं !!
बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) , जिन्होंने जुल्मी अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी, उनकी इस महानतम छवि के पीछे गीता माता के ही संस्कार थे । वे बचपन से ही ‘गीता’ का अध्ययन कर उनके अर्थों पर गहनता से विचार करके अपने जीवन में चरितार्थ करने का प्रयत्न करते थे ।
विद्यार्थीकाल में एक दिन उनके अध्यापक ने कक्षा के सभी छात्रों को गृहकार्य में गणित का एक कठिन सवाल हल करने को दिया । अध्यापक देखना चाहते थे कि कितने छात्र ईमानदारी से स्वयं गृहकार्य करते हैं और कितने अभिभावकों की मदद लेकर उनकी आँखों में धूल झोंकते हैं । दूसरे दिन जब अध्यापक ने सभी छात्रों से उस सवाल के बारे में पूछा तो पूरी कक्षा में सन्नाटा छा गया ।
अध्यापक ने मुस्कराते हुए कहा : ‘‘मुझे मालूम था, तुम लोग उसे हल नहीं कर पाओगे ।’’
‘‘नहीं गुरुजी ! मैंने यह सवाल हल किया है ।’’ इतना कहकर तिलकजी खड़े हो गये । अध्यापक ने जाँचा तो ठीक निकला । उन्हें शंका हुई कि ‘जरूर इसने किसीकी मदद से सवाल हल किया है ।’ उन्होंने तिलक से पूछा : ‘‘किसकी मदद से तुमने इसे हल किया है ?’’
‘‘इसे मैंने स्वयं ही हल किया है ।’’
‘‘तुम झूठ बोल रहे हो । तुमने अपने पिता की मदद से इसे हल किया है, इसलिए पूरा पीरियड तुम खड़े रहोगे ।’’
‘‘गुरुजी ! मैं जानता हूँ कि गुरुजनों की अवज्ञा नहीं करनी चाहिए पर यह आज्ञा मानने से मैं इनकार करता हूँ । क्योंकि जो सजा आप मुझे दे रहे हैं, मैं उसका हकदार नहीं और जो मैं कह रहा हूँ, वह सच है ।’’
अब तो अध्यापक महोदय का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा । तिलकजी के पिताजी पास के ही एक स्कूल में अध्यापक थे । अध्यापक ने चपरासी भेजकर उन्हें बुलवाया और पूछताछ की ।
वे बोले : ‘‘तिलक अपने पढ़ने-लिखने में मुझसे कोई मदद नहीं लेता । वह जो कुछ करता है, अपनी बुद्धि और स्वयं के प्रयास से करता है ।’’
यह सुनकर अध्यापक लज्जित हो गये ।
– ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के अध्ययन-मनन का ही यह दिव्य प्रभाव था कि वे सत्य पर निर्भयतापूर्वक अडिग रहे । गीता के दिव्य संस्कारों ने ही आगे चलकर उन्हें महान क्रांतिकारी व लोकप्रिय नेता के रूप में समाज के सम्मुख खड़ा किया । आज के राजनेता लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak) , लालबहादुर शास्त्री, गांधीजी जैसे गीता, सनातन धर्म, राष्ट्र व संस्कृति के प्रति निष्ठा रखनेवाले पूर्वकालीन आदर्श राजनेताओं के जीवन का अनुसरण करें तो भारत की गरीब व शोषित जनता को बड़ा भारी लाभ होगा ।
-प्रश्नोत्तरी : विद्यार्थी तिलक ने कठिन सवाल हल करने के लिए अपने पिताजी की मदद क्यों नहीं ली ?
~लोक कल्याण सेतु : अप्रैल-जून 2006