संत दादूजी के पट्टशिष्य संत गरीबदासजी के घर (नारायण ग्राम) में जो भी अतिथि आते, वे उनका खूब प्रेमभाव से सत्कार करते थे । उनके घर में ज्यादा सम्पन्नता नहीं थी, इसलिए कई बार उन्हें आस-पड़ोस से माँगकर अतिथियों की व्यवस्था करनी पड़ती थी । एक बार उनके अतिथि-सत्कार से प्रसन्न होकर हाँडी भँडंग नामक  वैष्णव ने उनको पारस का एक टुकड़ा भेंट करते हुए कहा :‘‘यह पारस पत्थर है । आप इसका अतिथि-सत्कार में उपयोग करें । आपको किसी भी चीज की कमी नहीं रहेगी ।’’ ऐसा कहकर वे चले गये । कुछ समय बाद वापस आकर उन्होंने गरीबदासजी से पूछा :‘‘अब तो आपका अतिथि-सत्कार का कार्य किसी की मदद बिना ही चलता होगा ?’’

गरीबदासजी : ‘‘अब क्या हो गया और पहले क्या नहीं था ?’’

‘‘अब आपके पास पारस है, इच्छानुसार स्वर्ण बना सकते हैं । पहले वह नहीं था ।’’

‘‘हमने तो उसे उसी दिन गरीबसागर (जहाँगीर बादशाह के बनवाये हुए कूप) में फेंक दिया था ।’’

यह सुनकर वैष्णव रोने लग गया ।

‘‘साधो ! क्या हुआ ? उस पत्थर के टुकड़े में ऐसा क्या था जो आप उसके लिए रो रहे हैं ?’’

‘‘उससे सोना बनता था । अब मैं दूसरा पारस कहाँ से लाऊँगा?’’

‘‘इसमें कौन-सी बड़ी बात है ! असली पारस तो अपना आत्मा-परमात्मा है, जो सत्-चित्-आनंदस्वरूप है और सबके पास है । पत्थर का टुकड़ा तो मिथ्या पारस था । शरीर भी

मिथ्या है ।’’

‘‘मुझे सत्संग नहीं सुनना है । मुझे मेरा पारस वापस चाहिए… ।’’

‘‘दुःखी मत होओ । तुम्हारे पास जो पारस है, उसे मृत्यु भी नहीं छीन सकती है ।’’

महापुरुषों की लीला कैसी होती है, जो नश्वर के बदले शाश्वत दे डालते हैं ! परंतु इस मिथ्या संसार में फँसे जीवों को यह संसार ही सच्चा लगता है । वैष्णव का रोना बंद ही नहीं हो रहा था । तब गरीबदासजी ने उससे उसका लोहे का चिमटा माँगकर अपने ललाट से छुआ दिया । वह सोने का बन गया ! यह देख वह वैष्णव हैरान रह गया । उसे अपनी गलती पर पश्चात्ताप होने लगा और साष्टांग दंडवत् पड़कर वह आँसुओं से उनके चरण धोने लगा । अब तक जो नकली पारस के लिए रो रहा था, अब वही असली पारस आत्मा-परमात्मा को पाने के लिए प्रार्थना करने लगा ।

संत गरीबदासजी ने उसे मंत्रदीक्षा देकर वास्तविक पारस की प्राप्ति के पथ पर अग्रसर कर दिया ।

सीख : ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु की कृपा से असली पारस की पहचान हो सकती है। 

 ✒प्रश्नोत्तरी : *”असली पारस की प्राप्ति किस प्रकार होगी?”

~ संकल्प :- “हम भी असली पारस की प्राप्ति के मार्ग पर चलेंगे।”