बालक नानक ने शिक्षक को बताये वर्णमाला के अक्षरों का अर्थ..
बालक नानक की बुद्धि बचपन से ही बड़ी तीक्ष्ण थी, उन्हें जो भी पढ़ाया जाता वे एक ही बार में उसे कंठस्थ कर लेते थे। एक दिन पंडित उन्हें देवनागरी की वर्णमाला सिखा रहे थे। वर्णमाला के कुछ अक्षर उनके पीछे दोहराने के बाद बालक नानक ने कहा: “पंडित जी! आप जो अक्षर सिखा रहे हैं, उनके अर्थ भी बताइए।”
पंडित आश्चर्य से नानक की ओर देखने लगे क्योंकि ऐसा प्रश्न इससे पहले किसीने नहीं किया था। वे बोले: “बेटा! ये तो मात्र अक्षर है जो दूसरे अक्षरों से योग करके वाक्यों का निर्माण करते हैं।”
नानक के चेहरे पर संतुष्टि के भाव न देखकर पंडित ने फिर कहा: “मेरी दृष्टि में तो ये केवल अक्षर हैं, तुम इनके बारे में कुछ और जानते हो तो बताओ।”
संत त्रिकालज्ञानी होते हैं, वे समाज को उन्नत और जागृत करने के लिए ही धरा पर अवतरित होते हैं। अपने क्रियाकलापों, लीलाओं से वे नित्य समाज में ज्ञान का संचार करते रहते हैं।
नानकजी ने कहा – ” ‘क’ हमें बताता है:
ककै केस पुंडर जब हुए विणु साबुनै उजलिआ ।
जम राजे के हेरू आए माइआ कै संगलि बंधि लइआ॥
जब मनुष्य के केश बुढ़ापे के कारण बिना साबुन प्रयोग किये सफेद हो जाते; मानो यमराज का संदेश मिल रहा है। परंतु व्यक्ति प्रभु का चिंतन न कर माया के बंधनों में बंधा रहता है।
‘ख’ हमें बताता है:
खखै खंदकारु साह आलमु करि खरीदि जिनि खरचु दीआ ।
बंधनि जाके सभु जगु बांधिआ अवरी का नहीं हुकुम पइया ।।
समस्त जगत का मालिक कसौटी से परीक्षा कर श्वास रुपी पूँजी देता है। सारा संसार उसके नियमों में बंधा पड़ा है। किसी दूसरे का उस पर जोर नहीं चल सकता।”
पंडित टकटकी लगाये बालक को देखते जा रहे थे और नानक बोले जा रहे थे। इस प्रकार नानक ने पूरी वर्णमाला के अक्षरों का वैराग्यपूर्ण अर्थ बता दिया।
बचपन के तीव्र वैराग्य की ओर जोर पकड़ा, बालक नानक पढ़ाई छोड़कर ईश्वर-भक्ति में लग गये। आगे चलकर यही बालक सिख धर्म के संस्थापक तथा हजारों जिज्ञासुओं को आत्मज्ञान का मार्ग दिखानेवाले गुरु नानकदेव जी के रूप में प्रसिद्ध हुए।