‘हे गुरुपूर्णिमा ! हे व्यासपूर्णिमा ! तू कृपा करना…. गुरुदेव के साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये…. मैं प्रार्थना करता हूँ गुरुवर ! आपके श्रीचरणों में मेरी श्रद्धा बनी रहे, जब तक है जिन्दगी…..’
वह भक्त ही क्या जो तुमसे मिलने की दुआ न करे ?
भूल प्रभु को जिंदा रहूँ, कभी ये खुदा न करे ।
हे गुरुवर !
लगाया जो रंग भक्ति का, उसे छूटने न देना ।
गुरु तेरी याद का दामन, कभी छूटने न देना ॥
हर साँस में तुम और तुम्हारा नाम रहे ।
प्रीति की यह डोरी, कभी टूटने न देना ॥
श्रद्धा की यह डोरी, कभी टूटने न देना ।
बढ़ते रहे कदम सदा तेरे ही इशारे पर ॥
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गुरुदेव ! तेरी कृपा का सहारा छूटने न देना ।
सच्चे बनें और तरक्की करें हम,
नसीबा हमारा अब रूठने न देना ।
देती है धोखा और भुलाती है दुनिया,
भक्ति को अब हमसे लुटने न देना ॥
प्रेम का यह रंग हमें रहे सदा याद,
दूर होकर तुमसे यह कभी घटने न देना ।
बड़ी मुश्किल से भरकर रखी है करुणा तुम्हारी….
बड़ी मुश्किल से थामकर रखी है श्रद्धा-भक्ति तुम्हारी….
कृपा का यह पात्र कभी फूटने न देना ॥
लगाया जो रंग भक्ति का उसे छूटने न देना ।
प्रभुप्रीति की यह डोर कभी छूटने न देना ॥
गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर हे गुरुदेव ! आपके श्रीचरणों में अनंत कोटि प्रणाम…. आप जिस पद में विश्रांति पा रहे हैं, हम भी उसी पद में विश्रांति पाने के काबिल हो जायें…. अब आत्मा-परमात्मा से जुदाई की घड़ियाँ ज्यादा न रहें…. ईश्वर करे कि ईश्वर में हमारी प्रीति हो जाय…. प्रभु करे कि प्रभु के नाते गुरु-शिष्य का सम्बंध बना रहे…’