Example of Changing Negative Thoughts to Positive thoughts: दो मित्र थे । दोनों पढ़े लिखे थे लेकिन एक था सदा संतोषी और दूसरा था सदा असंतोषी ।
दोनों बड़े हुए । एक रेलवे का ड्राइवर बना और दूसरा दुकान का मालिक बना । दुकान का मालिक तो बना लेकिन इस मूर्ख को सदा फरियाद करने की आदत थी ।
वह अपने मित्रों से बोल : “यार ! क्या जिंदगी है ? सुबह जल्दी-जल्दी दुकान पर जाना, शाम को थककर आना…. सामान लाना… मँगवाना.. यह सब झंझटें हैं ।”
फिर थोड़ी देर रुककर बोला : “परन्तु तू तो मुझसे भी ज्यादा दु:खी है ।”
ड्राइवर मित्र : “कैसे ?”
दुकान वाला मित्र : “काले-काले भूत जैसे रेलवे इंजन में बैठे रहना, गर्मी सहना, कभी इधर तो कभी उधर…. तेरी तो यार ! जिंदगी व्यर्थ है!”
ड्राइवर मित्र संतोषी था। स्वीकारात्मक विचारों वाला था ।
वह बोला : “नहीं..नहीं.. मित्र ! जिसका सोचने का ढंग गलत है उसकी जिंदगी व्यर्थ है जिसके पास सोचने का ढंग सही है उसी की जिंदगी सार्थक है ।
देख, मैं अहमदाबाद से दिल्ली मेल ले जाता हूँ । गर्मी होती है तो दरवाजे में खड़े होकर खुली हवा, बिना पंखे की मुफ्त हवा खाता हूँ । सर्दी होती तो बॉयलर के निकट खड़ा रहता हूँ । लोग पैसे देकर टिकट खरीदते हैं और हम मुफ्त में घूमते हैं, ऊपर से वेतन मिलता है वह अलग । हमारे जैसा सुखी कौन ?
ड्राइवर ने सुख माना और दुकानदार छाती कूटता है कि : “हाय ! रोज सुबह दुकान पर मरना पड़ता है, बही-खाते लिखने पड़ते हैं…….
ऐसा करते-करते दैवयोग से, तरतीव्र प्रारब्ध से उस ड्राइवर का पटरियाँ पार करते-करते गलती से ‘एक्सीडेंट’ हो गया । टाँग कट गई । अस्पताल में उसका इलाज हो रहा था । बैसाखियाँ लेकर चल रहा था । उस समय
उस दुकानदार मित्र ने आकर कहा : “अरे मित्र ! क्या तेरी जिंदगी है ! पैर कट गया….. मैं तो पहले ही बोलता था कि तेरी यह जिंदगी बड़ी दु:खद है ।”
काहे का दु:ख ?? पागल कहीं के! मेरे जैसा सुखी तुझे कोई नहीं मिलेगा । मैं इतने दिनों से यहाँ हूँ तो भोजन तैयार मिलता है, सेवा मिलती है, वेतन भी चालू है । रविवार को घर जाता था तो आटा पिसाने जाना पड़ता था । अब उससे छुट्टी मिल गई एक पैर हो गया । दोनों पैर में जूते पहनने पड़ते थे, अब एक से ही काम चल जाता है ।”
दुकानदार मित्र तो देखता ही रह गया । ड्राइवर मित्र के पास सोचने का सही ढंग था स्वीकारात्मक विचार थे तो उसने दु:ख संयोग में भी सुख बना लिया ।
आप भी सोचने का ढंग सही रखें सोचने का ढंग अगर गलत होगा तो तबाह हो जाएंगे….. सोचने का ढंग सही होगा तो महान से महान हो जाएंगे । शाद-आबाद हो जाएंगे ।
आप भी नकारात्मक फरियादात्मक विचार करके दु:खी मत बनिये और सुख की आसक्ति करके सांसारिक विषयों में सुखबुद्धि करके सुख के भोक्ता भी मत बनिए वरन स्वीकारात्मक एवं उच्च विचार करके ईश्वर के मार्ग पर अग्रसर होते रहे इसी में आपका कल्याण निहित है ।
गुरु-सन्देश – “हे रामजी ! वही जीव है जो सोचने का ढंग ऊँचा रखता है तो सहस्रनेत्रधारी इन्द्र होकर पूजा जाता है और वही जीव यदि सोचने का ढंग गलत रखता है तो सर्प होकर, बिच्छू होकर, कीड़ा-मकोड़ा होकर जमीन में रेंगता है ।”
सीख : गुरुमुख होकर सोचें, शास्त्र की दृष्टि से सोचें, मनमुख होकर नहीं नकारात्मक या फरियादात्मक होकर नहीं । यदि आपका सोचने का ढंग ऊँचा होगा तो आप महान हो जाएंगे और यदि सोचने का ढंग तुच्छ रहा, नकारात्मक, फरियादात्मक अथवा विषय-विलासवाला रहा तो ब्रह्मा जी भी आपका भला नहीं कर सकते । अतः सावधान !