Swami Ramanandacharya Jayanti Special - Satguru Mile Anant Fal

Swami Ramanandacharya Jayanti Special

  • सन् 1299 में एक लड़के का जन्म हुआ । जब वह पढ़ने योग्य हुआ तो माता-पिता ने उसे काशी भेजा । एक दिन वह काशी के पंचदेव घाट पर गुरुजी की सेवा के लिए फूल चुन रहा था । किसी आत्मज्ञानी महापुरुष ने उसे देख लिया और बोले : “ऐ छोरा ! क्या करता है ? फूल चुरा रहा है क्या ?”
  • लड़का : “नहीं महाराज जी ! चुरा नहीं रहा हूँ, गुरुजी के लिए फूल चुन रहा हूँ ।”
  • संत : “इधर आओ ! कहाँ रहते हो, कहाँ से आये हो ?”
  • लड़के ने अपना परिचय दिया । संत ने फिर पूछा : ‘‘क्या पढ़ते हो ? लड़के ने स्तोत्रपाठ सुना दिया ।”
  • उन महापुरुष ने कहा : ‘‘ऐ मूर्ख ! इस पाठ और रटा-रटी से क्या हो जायेगा ! दिये में तेल थोड़ा है, बाती बुझ जायेगी । यह पाठ तेरी क्या रक्षा करेगा ? भगवान का नाम ले, भगवान का ज्ञान पा ।”
  • लड़का : “अभी तो गुरुजी ने यह पाठ पढ़ाया है । शायद इसके बाद भगवद्भक्ति, मंत्रदीक्षा आदि देंगे ।”
  • संत : ‘‘तेरे गुरु को मेरे पास भेजना ।”
  • लड़के ने सारी बात अपने गुरुजी को बतायी । गुरुजी संत के पास गये तो उन्होंने कहा : “लड़के की उम्र ज्यादा नहीं है । यह थोड़े दिन का मेहमान है । अब पाठ रट-रट के क्या करेगा ?इसको तो भगवान की भक्ति का, भगवान के रहस्य का प्रसाद दो ।”
  • गुरुजी : “मैं जानता हूँ । ज्योतिष के अनुसार यह लड़का ज्यादा दिन नहीं जीयेगा । लेकिन महाराज जी ! मैं क्या करूँ, मेरे पास इसका तोड़ नहीं है ।”
  • ‘तोड़ नहीं है तो क्यों रखा है अपने पास ? मेरे पास भेज दो ।’
  • संत ने उस लड़के को अपने पास बुला लिया । जब मृत्यु का समय आया तो अपनी कृपा और योगशक्ति से मृत्यु का काल टाल दिया । इस तरह से उसकी मौत टल गयी । जो किशोर अवस्था में मरनेवाला था वह एक सौ ग्यारह साल तक जीया । आगे चलकर उस किशोर का नाम पड़ा रामानंद स्वामी ।
  • गुरुवाणी में भी रामानंद स्वामी का नाम आता है । कहाँ तो एक साधारण-सा लड़का था और उसे सद्गुरु का संग मिला तो वह इतना महान हो गया कि कबीरदास जी रामानंद स्वामी के शिष्य हुए, रोहिदास जी उनके शिष्य हुए और जो भी हजारों रामानंदी साधु हैं, वे सब उन्हीं की परम्परा के हैं ।
  • आत्मज्ञानी महापुरुष के दर्शन से, सत्संग से क्या फायदा होता है, मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता । मुझे मेरे गुरुदेव के दर्शन से, उनके चरणों की सेवा से क्या फायदा हुआ, मैं बयान नहीं कर सकता । मेरे सम्पर्क में आनेवाले करोड़ों लोगों को कितना और क्या-क्या फायदा हुआ, मुझे पता ही नहीं ! मैं हिसाब नहीं लगा सकता हूँ ।
  • सद्गुरु की महिमा के बारे में कबीरदास जी कहते हैं :

तीरथ नहाये एक फल, संत मिले फल चार ।
सद्गुरु मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार ।।

  • ‘गु’ माने अंधकार ‘रु’ माने प्रकाश, जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जायें, लघुता से गुरुत्व की तरफ ले जायें, ऐसे सद्गुरु मिले बिना यह साधारण जीव अपने असाधारण पद की पहचान नहीं कर पाता है ।
  • साधारण बालक से 111 वर्षीय पूज्यपाद रामानंद स्वामी बने और उनको महान बनानेवाले संत थे राघवानंदजी ।