Can vegetarians eat chocolate cake ? Is Cadbury/ White Dark Chocolates Vegetarian/ Vegan or Non Veg? Know Full Details Here:
★ चॉकलेट का नाम सुनते ही बच्चों के मन में गुदगुदी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। बच्चों को खुश करने का एक प्रचलित साधन है “चॉकलेट” !!
★ बच्चों में ही नहीं, वरन् किशोरों तथा युवा वर्ग में भी चॉकलेट ने अपना विशेष स्थान बना रखा है।
★ पिछले कुछ समय से टॉफियों तथा चॉकलेटों का निर्माण करने वाली अनेक कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों में आपत्तिजनक अखाद्य पदार्थ मिलाये जाने की खबरें सामने आ रही हैं। कई कंपनियों के उत्पादों में तो हानिकर रसायनों के साथ-साथ गायों की चर्बी मिलाने तक की बात का रहस्योदघाटन हुआ है।
★ गुजरात के समाचार पत्र ‘गुजरात समाचार’ में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, ‘नेस्ले यू.के. लिमिटेड’ द्वारा निर्मित ‘किटकैट’ नामक चॉकलेट में कोमल बछड़ों के ‘रेनेट’ (मांस) का उपयोग किया जाता है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ‘किटकैट’ बच्चों में खूब लोकप्रिय है। अधिकतर शाकाहारी परिवारों में भी इसे खाया जाता है।
नेस्ले यू.के.लिमिटेड की न्यूट्रिशन आफिसर श्रीमति वाल एन्डर्सन ने अपने एक पत्र में बताया किः ‘किटकैट के निर्माण में कोमल बछड़ों के रेनेट का उपयोग किया जाता है। फलतः किटकैट शाकाहारियों के खाने योग्य नहीं है।”
इस पत्र को अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘यंग जैन्स’ में प्रकाशित किया गया था। अतः सावधान रहो ऐसी कंपनियों के कुचक्रों से !
★टेलिविजन पर अपने उत्पादों को शुद्ध दूध पीने वाले अनेक कोमल बछड़ों के मांस की प्रचुर मात्रा अवश्य होती है।
★हमारे धन को अपने देशों में ले जाने वाली ऐसी अनेक विदेशी कंपनियाँ हमारे सिद्धान्तों तथा परम्पराओं को तोड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।
व्यापार तथा उदारीकरण की आड़ में भारतवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
★सन् 1857 में अंग्रेजों ने कारतूसों में गायों की चर्बी का प्रयोग करके सनातन संस्कृति को खण्डित करने की साजिश की थी परन्तु मंगल पाण्डेय जैसे वीरों ने अपनी जान पर खेलकर उनकी इस चाल को असफल कर दिया।
अभी फिर यह नेस्ले कम्पनी चालें चल रही है। अभी मंगल पाण्डेय जैसे वीरों की जरूरत है। ऐसे वीरों को आगे आना चाहिए।
★हमारे देश को खण्ड-खण्ड करने के मलिन मुरादे रखने वालों और हमारी संस्कृति पर कुठाराघात करने वालों को सबक सिखाना चाहिए।
★लेखकों, पत्रकारों, प्रचारकों को उनका डटकर विरोध करना चाहिए। देव संस्कृति, भारतीय समाज की सेवा में सज्जनों को साहसी बनना चाहिए। इस ओर सरकार का भी ध्यान खिंचवाना चाहिए।
★ऐसे हानिकारक उत्पादों के उपभोग को बंद करके ही हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं। इसलिए हमारी संस्कृति को तोड़ने वाली ऐसी कम्पनियों के उत्पादों के बहिष्कार का संकल्प लेकर आज और अभी से भारतीय संस्कृति की रक्षा में हम सबको कंधे से कंधा मिलाकर आगे आना चाहिए।
~ बाल संस्कार पाठ्यक्रम..