- शरद पूनम की रात…. मंद-मंद पवन बह रही है । राधा रानी के साथ हजारों सुंदरियों के बीच भगवान बंसी बजा रहे हैं । कामदेव ने अपने सारे दाँव आजमा लिये । सब विफल हो गया ।
- कामदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि ” हे देव ! मैं बड़े-बड़े ऋषियों , मुनियों , तपस्वियों ब्रह्मचारियों को हरा चुका हूँ । मैंने ब्रह्माजी को आकर्षित कर दिया । शिवजी की भी समाधि विक्षिप्त कर दी । भगवान नारायण ! अब आपकी बारी है । आपके साथ भी मुझे खिलवाड़ करना है । हो जाए दो-दो हाथ ? “
- भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : ” अच्छा बेटे ! पर तू अपनी शक्ति का जोर देखना चाहता है ! मेरे साथ युद्ध करना चाहता है ! तो बता , मेरे साथ तू एकांत में आयेगा कि मैदान में आयेगा ? “
- एकांत में काम की दाल नहीं गली तो भगवान कहा : ” कोई बात नहीं । अब बता , तुझे क्या युद्ध एकांत में करना है कि मैदान में ? अर्थात् मैं अपनी गृहस्थी में रहूँ , तब तुझे युद्ध करना है कि जब मैदान में होऊँ तब युद्ध करना है ? ”
- बोले : “ महाराज ! जब युद्ध होता है तो मैदान में होता है । किले में क्या करना ! “
- भगवान बोले : ” ठीक है , मैं तुझे मैदान दूँगा । जब चन्द्रमा पूर्ण कलाओं से विकसित हो , शरद पूनम की रात हो , तब तुझे मौका मिलेगा । ललनाएँ बुला लूँगा । “
- शरद पूनम की रात आयी और श्रीकृष्ण ने बजायी बंसी । बंसी में श्रीकृष्ण ने ‘ क्लीं ‘ बीजमंत्र फूँका ।
- क्लीं बीजमंत्र फूँकने की कला तो भगवान श्रीकृष्ण ही जानते हैं…. बीज मंत्र बड़ा प्रभावशाली होता है ।
- श्रीकृष्ण हैं तो सबके सार और अधिष्ठान लेकिन जो कुछ करना होता है न , तो राधा जी का सहारा ढूँढते हैं । राधा भगवान की आह्लादिनी शक्ति माया हैं ।
- भगवान बोले : ” राधे देवी ! तू आगे – आगे चल । कहीं तुझे ऐसा न लगे कि ये गोपिकाओं में उलझ गये , फँस गये । राधे ! तुम भी साथ में रहो । अब युद्ध करना है । काम बेटे को जरा अपनी विजय का अभिमान हो गया है । तो आज उसके साथ दो – दो हाथ होने हैं । चल राधे तू भी । “
- भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजायी, क्लीं बीजमंत्र फूँका । 32 राग , 64 योगिनियों… शरद पूनम की रात…. मंद – मंद पवन बह रहा है । राधा रानी के साथ हजारों सुंदरियों के बीच भगवान बंसी बजा रहे हैं । कामदेव ने अपने सारे दाँव आजमा लिये । सब विफल हो गया ।
- भगवान कृष्ण ने कहा : “ काम ! आखिर तो तू मेरा बेटा ही है ! ” वही काम भगवान श्रीकृष्ण का बेटा प्रद्युम्न होकर आया ।
- कालों के काल , अधिष्ठानों के अधिष्ठान तथा काम – क्रोध , लोभ – मोह सबको सत्ता – स्फूर्ति देने वाले और सबसे न्यारे रहने वाले भगवान श्रीकृष्ण को जो अपनी जितनी विशाल समझ और विशाल दृष्टि से देखता है , उतना ही उसके जीवन में रस पैदा होता है ।
- मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन के विध्वंसकारी , विकारी हिस्से को शांति सर्जन और सत्कर्म में बदलकर , सत्यस्वरूप का ध्यान और ज्ञान पाकर परम पद पाने के रास्ते सजग होकर लग जाएँ तो उसके जीवन में भगवान कृष्ण की नाई रासलीला होने लगेगी ।
- रासलीला किसको कहते हैं ? नर्तक तो एक हो और नाचने वाली अनेक हों , उसे रासलीला कहते हैं । नर्तक एक परमात्मा है और नाचने वाली वृत्तियाँ बहुत हैं । आपके जीवन में भी रासलीला आ जाए लेकिन श्रीकृष्ण की नाई नर्तक अपने स्वरूप में , अपनी महिमा में रहे और नाचने वाली नाचते – नाचते नर्तक में खो जायें और नर्तक को खोजने लग जायें और नर्तक उन्हीं के बीच में , उन्हीं के वेश में छुप जाए… यह बड़ा आध्यात्मिक रहस्य है ।
– ऋषि प्रसाद, अक्टूबर 2010