हे विद्यार्थी !
जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफल होना चाहते हो तो कोई-न-कोई अच्छा व्रत ले लो तथा उसका दृढ़तापूर्वक पालन करो। जिस प्रकार गांधी जी ने बाल्यावस्था में राजा हरिशचन्द्र का नाटक देखकर जीवन में सत्य बोलने का व्रत लिया तथा जीवनपर्यन्त उसका पालन किया। व्रत (नियम) और दृढ़तारूपी दो सदगुण हों तो जीव शिवस्वरूप हो जाता है, मानव से महेश्वर बन जाता है।
राजा उत्तानपाद की दो रानियाँ थीं। प्रिय रानी का नाम था सुरूचि और अप्रिय रानी का नाम था सुनीति। दोनों रानियों को एक-एक पुत्र थे।
एक बार रानी सुनीति का पुत्र ध्रुव खेलता-खेलता अपने पिता की गोद में बैठ गया। प्रिय रानी ने तुरंत ही उसे अपने पिता की गोद से नीचे उतारकर कहाः “पिता की गोद में बैठने के लिए पहले मेरी कोख से जन्म ले।”
ध्रुव (Balak Dhruv) रोता-रोता अपनी माँ के पास गया और सारी बात माँ से कही। माँ ने खूब समझायाः “बेटा! यह राजगद्दी तो नश्वर है, तू तो भगवान का दर्शन करके शाश्वत गद्दी प्राप्त कर।”
ध्रुव (Balak Dhruv) को माँ की सीख बहुत अच्छी लगी और वह तुरन्त ही दृढ़ निश्चय करके तप करने के लिए जंगल में चला गया। रास्ते में हिंसक पशु मिले फिर भी वह भयभीत नहीं हुआ।
इतने में उसे देवर्षि नारद मिले। ऐसे घनघोर जंगल में मात्र 5 वर्ष के बालक को देखकर नारदजी ने वहाँ आने का कारण पूछा। ध्रुव (Balak Dhruv) ने घर में हुई सब बातें नारद जी से कहीं और भगवान को पाने की तीव्र इच्छा प्रकट की।
नारदजी ने ध्रुव (Balak Dhruv) को समझायाः “तू इतना छोटा है और भयानक जंगल में ठंडी-गर्मी सहन करके तपस्या नहीं कर सकता इसलिए तू घऱ वापस चला जा। ” परन्तु ध्रव दृढ़ निश्चयी था। उसकी दृढ़ निष्ठा और भगवान को पाने की तीव्र इच्छा देखकर नारदजी ने ध्रुव को “ૐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र देकर आशीर्वाद दियाः “बेटा ! तू श्रद्धा से इस मंत्र का जप करना। भगवान जरूर तुझ पर प्रसन्न होंगे।”
ध्रुव (Balak Dhruv) तो कठोर तपस्या में लग गया। एक पैर पर खड़े होकर, ठंडी-गर्मी, बरसात सब सहन करते हुए नारदजी के द्वारा दिये हुए मंत्र का जप करने लगा। उसकी निर्भयता, दृढ़ता और कठोर तपस्या से भगवान नारायण स्वयं प्रकट हो गये।
भगवान ने ध्रुव (Balak Dhruv) से कहाः “कुछ माँग, माँग बेटा ! तुझे क्या चाहिए। मैं तेरी तपस्या से प्रसन्न हुआ हूँ। तुझे जो चाहिए वह माँग ले।” ध्रुव भगवान को देखकर आनंदविभोर हो गया। भगवान को प्रणाम करके कहाः “हे भगवन् ! मुझे दूसरा कुछ भी नहीं चाहिए। मुझे अपनी दृढ़ भक्ति दो।”
भगवान और अधिक प्रसन्न हो गये और बोलेः “तथास्तु। मेरी भक्ति के साथ-साथ तुझे एक वरदान और भी देता हूँ कि आकाश में एक तारा ʹध्रुवʹ तारा के नाम से जाना जायेगा और दुनिया दृढ़ निश्चय के लिए तुझे सदा याद करेगी।” आज भी आकाश में हमें यह तारा देखने को मिलता है। ऐसा था बालक ध्रुव, ऐसी थी भक्ति में उसकी दृढ़ निष्ठा।
सीख: पाँच वर्ष के ध्रुव को भगवान मिल सकते हैं। तो हमें क्यों नहीं मिल सकते ! जरूरत है भक्ति में निष्ठा की और दृढ़ विश्वास की। इसलिए बच्चों को हररोज निष्ठापूर्वक प्रेम से मंत्र का जप करना चाहिए।
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