An Inspirational Life Story of Hazrat Nizamuddin Auliya from Biography in Hindi for Kids: निजामुद्दीन औलिया एक सूफी फकीर एवं बाबा फरीद के प्रेमभाजन थे । एक बार निजामुद्दीन औलिया के पास एक गृहस्थ मुसलमान आया और बोला : “बाबा ! मुझे अपनी लड़की के हाथ रंगने हैं । हो जाये कुछ रहमत…”

औलिया : “आज कोई धनवान नहीं दिखता । कल आना ।”

दूसरे दिन भी वह गृहस्थ आया किन्तु उस दिन औलिया का कोई सेठ भक्त नहीं आया । पुनः निजामुद्दीन औलिया ने कहा : “कल आना ।” इस प्रकार ‘कल… कल…’ करते कुछ दिन बीत गये किन्तु कोई सेठ आया नहीं ।

तब वह गृहस्थ बोला : “बाबा ! मुझ गरीब का भाग्य भी गरीब है । अब आपसे जो रहमत हो सके, वही दे दीजिये ।”

निजामुद्दीन औलिया : “भाई ! मेरे पास तो इस वक्त मेरी जूती पड़ी है । वही ले जाओ ।”

औलिया की जूती लेकर वह गृहस्थ निकल पड़ा और सोचने लगा कि, ‘इस जूती के तो दो चार आने मिल जायेंगे । चलो, उसी पैसों से गुड़ लेकर खा लेंगे ।’ इस प्रकार के विचार करते-करते वह जा रहा था ।

इधर अमीर खुसरो अपने वजीरपद से इस्तीफा देकर चालीस ऊँटों पर अपने पूरे जीवन की कमाई लदवाकर औलिया के चरणों में जीवन धन्य बनाने के लिए आ रहा था । इस गृहस्थ के पास आने पर उस प्यारे शिष्य अमीर खुसरो को अपने गुरुदेव निजामुद्दीन की खुशबू आयी तो वह सोचने लगा कि मानो-न-मानो, मेरे औलिया की खुशबू इसी आनेवाले आदमी की ओर से आ रही है । अमीर खुसरो ने फिर गौर किया । जब वह आदमी पीछे गया तो खुशबू पीछे से आने लगी । उसे जाते देखकर अमीर खुसरो ने आवाज लगायी : “ठहरो भाई ! मेरे औलिया के यहाँ से तुम क्या लिये जा रहे हो ? मेरे औलिया का ओज दिखाई दे रहा है । क्या है तुम्हारे पास ?”

उस आदमी ने सारी बात अमीर खुसरो को बता दी और कहा : “उन्होंने मुझे अपनी यह जूती दी है ।”

खुसरो : “अच्छा ! बताओ, तुम कितने में इसे दोगे ?”

व्यक्ति : “आप जो मूल्य लगायें ।”

अमीर खुसरो : “मेरे औलिया की जूती का मूल्य चुकाने की सामर्थ्य तो मुझमें नहीं है । फिर भी मैं मुफ्त में लेना भी नहीं चाहूँगा । मेरे जीवन की सारी कमाई चालीस ऊँटों पर लदी है । इनमें से एक ऊँट, जिस पर सीधा-सामान है, केवल वही मैं रखता हूँ बाकी के उनतालीस ऊँट तुम्हें देता हूँ । यदि दे सको तो मेरे शहंशाह की यह जूती मुझे दे दो ।”

वह व्यक्ति तो हैरान हो गया कि जिसे मैं दो-चार आने की जूती मान रहा था, उसके लिए अमीर खुसरो अपने पूरे जीवन की कमाई देने पर भी सौदा सस्ता मान रहा है ! उसने औलिया की जूती अमीर खुसरो को दे दी ।

अमीर खुसरो पहुँचा गुरु के द्वार पर और प्रणाम किया अपने औलिया को । एक रेशमी रूमाल से ढँककर सौगात पेश की औलिया के कदमों में ।

निजामुद्दीन : “क्या लाये हो ?”

अमीर खुसरो : “आपकी दी हुई चीज आपके चरणों में लाया हूँ ।”

निजामुद्दीन : “आखिर लाये क्या हो ? कौन से मेवे-मिठाइयाँ हैं ?”

अमीर खुसरो : “गुरुदेव ! मेरे औलिया ! मेवे-मिठाइयों से भी ज्यादा कीमती चीज है ।”

निजामुद्दीन : “क्या है ?”

अमीर खुसरो : “औलिया ! मेरे सारे जीवन की कमाई का सार है ।”

निजामुद्दीन : “आखिर है क्या ?”

अमीर खुसरो : “मेरे मालिक ! मेरे आका ! मैं क्या बोलूँ ? मेरे लिये तो मेरे पूरे जीवन की कमाई है ।”

निजामुद्दीन : “अच्छा ! खोलो तो सही !”

धीरे-से रेशम का रूमाल हटाया अमीर खुसरो ने । देखते ही चौंक पड़े निजामुद्दीन औलिया और बोले : “अरे ! यह तो मेरी जूती ! थोड़ी देर पहले ही एक गरीब को दी थी । क्या तूने छीन ली उससे ?”

अमीर खुसरो : “मेरे रब ! मैंने छीनी नहीं है ।”

निजामुद्दीन : “तो क्या खरीदी है ?”

अमीर खुसरो : “इस बंदे में क्या ताकत कि आपकी जूती खरीद सके ?”

निजामुद्दीन : “फिर कैसे लाया है ?”

अमीर खुसरो : “मेरे औलिया ! मेरे जीवन भर की कमाई से लदे जो चालीस ऊँट थे उनमें से एक सीधे सामान, बोरी-बिस्तर वाले ऊँट को छोड़कर बाकी के उनतालीस ऊँट देकर इसे लाया हूँ ।”

तब निजामुद्दीन बोले : “फिर भी सौदा सस्ता है ।”

– ऋषि प्रसाद, जुलाई 1997