🌷 मौन से शक्तिसंचय 🌷
【बोलने से नहीं, चुप रहने से होता है ज्यादा लाभ..】
▪ मौन से शक्ति की सुरक्षा, संकल्पबल में वृद्धि तथा मन के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मानसिक तनाव दूर होते हैं। शारीरिक तथा मानसिक कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
▪ ʹछांदोग्य उपनिषद्ʹ के अनुसार वाणी तेजोमय है। वाणी का निर्माण अग्नि के स्थूल भाग, हड्डी के मध्य भाग तथा मज्जा के सूक्ष्म भाग से होता है। अतः वाणी बड़ी शक्तिशाली होती है। जो वाणी का संयम नहीं करता उसकी जिह्वा अनावश्यक बोलती रहती है और अनावश्यक शब्द प्रायः कलह एवं वैरभाव उत्पन्न करते हैं व प्राणशक्ति सोख लेते हैं।
▪ स्वयं भगवान शिव भी अधिकांश समय एकांत में समाधिस्थ रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण 13 वर्षों तक घोर अंगिरस ऋषि के आश्रम में मौन का अवलम्बन लेकर एकांतवास में रहे। उसके बाद युद्ध के मैदान में उनके द्वारा अर्जुन को उपनिषदों के साररूप में जो कुछ कहा गया, उससे ʹश्रीमद् भगवदगीताʹ का प्राकट्य हुआ।
▪ रमण महर्षि 53 वर्षों तक अरूणाचलम् में रहे। इस बीच उन्होंने अनेक वर्ष एकांत में मौन रहकर व्यतीत किये। गांधी जी भी सप्ताह में एक दिन मौन रखते थे। पूज्य संत श्री आशारामजी बापू भी 7 वर्षों तक एकांत में रहे और अभी भी कभी-कभी एकांतवास में चले जाते हैं। पूज्य श्री 40-40 दिन मौन रहे। एकांत के दिनों में अभी भी वे दिन में कई घंटों मौन रहते हैं। बापूजी के सदगुरु ब्रह्मलीन स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज भी मौन रखते थे।
▪ मौन व उपवास रोग तथा थकान को मिटा देते हैं। शारीरिक पीड़ा के समय मौन रखने से मन-मस्तिष्क व स्नायुओं को विश्रांति मिलती है। भोजन भी सदैव मौन होकर करना चाहिए।