” हे मेरे शिष्यों! आयुर्वेद में सफलता पाने के लिए और अपने सद्गुणों को विकसित करने के लिए यौवन की रक्षा करो। ब्रह्मचर्य व्रत वह रत्न है, वह अमृत की खान है जो जीवात्मा का परमात्मा से भी मिलाने का सामर्थ्य रखता है। यौवन-सुरक्षा के नियम समझोगे तो तुम आयुर्वेद में तो सफल होगे ही, साथ में आत्मा-परमात्मा को पाने में भी सफल हो जाओगे ।
हे मेरे शिष्यों ! हलकी मति के विद्यार्थियों का अनुकरण मत करना,तुम तो संयमी-सदाचारी एवं वीर पुरुषों, योगी पुरुषों, पवित्र भक्त आत्माओं का अनुसरण करना।”