➠ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में डिलाबार प्रयोगशाला में बार-बार एक प्रयोग किया गया कि आपके अपने विचारों का प्रभाव तो आपके रक्त पर पड़ता ही है परन्तु आपके विषय में शुभ अथवा अशुभ विचार करनेवाले अन्य लोगों का प्रभाव आपके रक्त पर कैसा पड़ता है और आपके अन्दर कैसे परिवर्तन होते हैं।

➠ वैज्ञानिकों ने अपने दस वर्ष के परिश्रम के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि :

“आपके लिए जिनके ह्रदय में मंगल भावना भरी हो, जो आपका उत्थान चाहता हो ऎसे व्यक्ति के संग में जब आप रहते हैं तब आपके प्रत्येक घन मि.मी. रक्त में 1500 श्वेतकणों का वर्धन एकाएक हो जाता है । इसके विपरीत आप जब किसी द्वेषपूर्ण अथवा दुष्ट विचरोंवाले व्यक्ति के पास जाते हो तब प्रत्येक घन मि.मी रक्त में 1600 श्वेतकण तत्काल घट जाते हैं ।”

➠ वैज्ञानिकों ने तुरन्त लहू-निरीक्षण उपरान्त यह निर्णय प्रकट किया है ।  जीवविज्ञान कहता है कि रक्त के श्वेतकण ही हमें रोगों से बचाते हैं और अपने आरोग्य की रक्षा करते हैं । 

➠ वैज्ञानिकों को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शुभ विचारवाले, सबका हित चाहनेवाले, मंगलमूर्ति सज्ज्न पुरुषों  में ऎसा क्या होता है कि जिनके दर्शन से अथवा जिनके सान्निध्य में आने से इतना परिवर्तन आ जाता है ? अपना योगविज्ञान तो पहले से जानता है परन्तु अब आधुनिक विज्ञान भी इसे सिद्ध करने लगा है ।

➠ रक्त में जब इतना परिवर्तन होता है तब अन्य कितने अदृश्य एवं अज्ञात परिवर्तन होते होंगे जो कि विज्ञान के जानने में न आते हों ?

~ मन को सीख साहित्य से