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दिवाली प्रिय पूजियेगा
वर्षों दिवाली करते रहे हो ।
तो भी अन्धेर घुप में पड़े हो ।।
माया अन्धेर अब त्यागियेगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिय पूजियेगा ।।
पूजा अनात्मा नहीं आत्म पूजा ।
पूजा करे ‘हो’ नित भूत दूजा ।।
ना दूसरे से सुख पाइयेगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिय पूजियेगा ।।
क्या सूर्य को धूप छुपा सके है ।
क्या सिंधु को तरंग दबा सके है ।।
ना झूठ से सत्य छिपाइयेगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिय पूजियेगा ।।
दृष्टा तथा दृश्य जुदे जुदे हैं ।
अज्ञान से भासते एक से हैं ।।
अज्ञान की ऐनक तोड़ियेगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिय पूजियेगा ।।
बाले दीये बाह्य किया उजेरा ।
फैला हुआ है घर में अंधेरा ।।
अन्धेर ऐसा मत कीजियेगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिया पूजियेगा ।।
‘योगांग झाड़ू’ घर चित्त झाड़ो ।
विक्षेप कूड़ा, ‘सब झाड़ काढ़ो’ ।।
अभ्यास पीता फिर फेरियगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिय पूजियेगा ।।
प्रजा मिला प्राणन बत्ती घालो ।
वैराग्य घी दीपक ज्ञान बालो ।।
जो वस्तु जैसी तस देखियेगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिय पूजियेगा ।।
ऐसी दिवाली श्रुति संत गाई ।
अत्रेय योगी करके दिखाई ।।
भोला ! कहे मित्र न चूकियेगा ।
प्रज्ञा दिवाली प्रिय पूजियेगा ।।