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मानस पूजा ( गुरु पूनम पर विशेष )
- गुरु पूर्णिमा अर्थात् गुरु के पूजन का पर्व । किंतु आज सब लोग अगर गुरु को नहलाने लग जायें, तिलक करने लग जायें, हार पहनाने लग जायें…. तो यह संभव नहीं है लेकिन षोडशोपचार की पूजा से भी अधिक फल देने वाली मानसपूजा करने से तो भाई ! स्वयं गुरु भी नहीं रोक सकते । मानसपूजा का अधिकार तो सबके पास है ।
- महिमावान श्री सद्गुरुदेव के पावन चरण कमलों का षोडशोपचार से पूजन करने से साधक-शिष्य का हृदय शीघ्र शुद्ध और उन्नत बन जाता है ।
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मानसपूजा इस प्रकार कर सकते हैं :
- ➠ मन-ही-मन भावना करो कि हम गुरुदेव के श्रीचरण धो रहे हैं…
- ➠ सप्त तीर्थों के जल से उनके पादारविन्द को स्नान करा रहे हैं । खूब आदर एवं कृतज्ञतापूर्वक उनके श्रीचरणों में दृष्टि रखकर… श्रीचरणों को प्यार करते हुए उनको नहला रहे हैं… उनके तेजोमय ललाट पर शुद्ध चंदन का तिलक कर रहे हैं… अक्षत चढ़ा रहे हैं… अपने हाथों से बनायी हुई गुलाब के सुंदर फूलों की सुहावनी माला अर्पित करके अपने हाथ पवित्र कर रहे हैं…
- ➠ हाथ जोड़कर, सिर झुका कर अपना अहंकार उनको समर्पित कर रहे हैं… पाँच कर्मेन्द्रियों, पाँच ज्ञानेन्द्रियों एवं ग्यारहवें मन की चेष्टाएँ गुरुदेव के श्रीचरणों में समर्पित कर रहे हैं…
- कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्याऽऽत्मना वा प्रकृतेः स्वभावात्।
- करोमि यद् यद् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ।।
- ‘शरीर से, वाणी से, मन से, इन्द्रियों से, बुद्धि से अथवा प्रकृति के स्वभाव से जो-जो करते हैं वह सब समर्पित करते हैं। हमारे जो कुछ कर्म है,हे गुरुदेव सब आपके श्रीचरणों में समर्पित है। हमारा कपिन का भाव, हमारा भोक्तापन का भाव आपके श्रीचरणों में समर्पित है। इस प्रकार ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु की कृपा को, ज्ञान को, आत्मशान्ति को हृदय में भरते हुए उनके अमृतवचनों पर अडिग बनते हुए अन्तर्मुख होते जाओ.., आनन्दमय बनते जाओ…
- ॐ आनंद! ॐ आनंद ॐ आनंद
- ➠ इस प्रकार शिष्य मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार अपने सद्गुरुदेव का पूजन करके गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मना सकता है | करोड़ों जन्मों के माता-पिता, मित्र-सम्बन्धी जो न दे सके, सद्गुरुदेव वह हँसते-हँसते दे डालते हैं । हे गुरु पूर्णिमा ! हे व्यासपूर्णिमा ! तू कृपा करना…
- ➠ ‘गुरुदेव के साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये… मैं प्रार्थना करता हूँ, गुरुवर ! जब तक है जिंदगी, आपके श्रीचरणों में मेरी श्रद्धा बनी रहे |
- ➠ वह भक्त ही क्या जो तुमसे मिलने की दुआ न करे ?
- भूल प्रभु को जिंदा रहूँ कभी ये खुदा न करे !!
- लगाया जो रंग भक्ति का उसे छूटने न देना ।
- गुरु तेरी याद का दामन कभी छूटने न देना…
- हर साँस में तुम और तुम्हारा नाम रहे प्रीति की यह डोरी कभी टूटने न देना….,
- श्रद्धा की यह डोरी कभी टूटने न देना ।
- बढ़ते रहें कदम सदा तेरे ही इशारे पर, गुरुदेव ! तेरी कृपा का सहारा छूटने न देना ।
- सच्चे बनें और तरक्की करें हम, नसीबा हमारा अब रूठने न देना !!!
- देती है धोखा और भुलाती है दुनिया, भक्ति को अब हमसे लुटने न देना ।
- प्रेम का यह रंग हमें रहे सदा याद, दूर हों हम तुमसे यह कभी घटने न देना ?
- बड़ी मुश्किल से भरकर रखी है करुणा तुम्हारी..
- बड़ी मुश्किल से थाम कर रखी है श्रद्धा-भक्ति तुम्हारी…
- कृपा का यह पत्र कभी फूटने न देना ।
- लगाया जो रंग भक्ति का उसे छूटने न देना, प्रभु प्रीति की यह डोर कभी टूटने न देना !!
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आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर हे गुरुदेव !
- ➠ आपके श्रीचरणों में अनंत कोटि प्रणाम… आप जिस पद में विश्रांति पा रहे हैं, हम भी उसी पद में विश्रांति पाने के काबिल हो जायें… अब आत्मा-परमात्मा से जुदाई की घड़ियाँ ज्यादा न रहें… ईश्वर करे कि ईश्वर में हमारी प्रीति हो जाय… प्रभु करे कि प्रभु के नाते गुरु-शिष्य का संबंध बना रहे…
- – ऋषि प्रसाद, अंक -१२७, २००३
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Kaise Kare Manas Pujan/ Mansik Pujan [Mental Worship] Vidhi : मानस पूजा ( गुरु पूनम पर विशेष )
- गुरु पूर्णिमा अर्थात् गुरु के पूजन का पर्व । किंतु आज सब लोग अगर गुरु को नहलाने लग जायें , तिलक करने लग जायें, हार पहनाने लग जायें…. तो यह संभव नहीं है लेकिन षोडशोपचार की पूजा से भी अधिक फल देने वाली मानसपूजा करने से तो भाई ! स्वयं गुरु भी नहीं रोक सकते ।
- मानसपूजा का अधिकार तो सबके पास है ।
- महिमावान श्री सद्गुरुदेव के पावन चरण कमलों का षोडशोपचार से पूजन करने से साधक-शिष्य का हृदय शीघ्र शुद्ध और उन्नत बन जाता है ।
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- मन-ही-मन भावना करो कि हम गुरुदेव के श्रीचरण धो रहे हैं…
- सप्त तीर्थों के जल से उनके पादारविन्द को स्नान करा रहे हैं । खूब आदर एवं कृतज्ञतापूर्वक उनके श्रीचरणों में दृष्टि रखकर… श्रीचरणों को प्यार करते हुए उनको नहला रहे हैं… उनके तेजोमय ललाट पर शुद्ध चंदन का तिलक कर रहे हैं…
- अक्षत चढ़ा रहे हैं… अपने हाथों से बनायी हुई गुलाब के सुंदर फूलों की सुहावनी माला अर्पित करके अपने हाथ पवित्र कर रहे हैं…
- हाथ जोड़कर, सिर झुका कर अपना अहंकार उनको समर्पित कर रहे हैं… पाँच कर्मेन्द्रियों, पाँच ज्ञानेन्द्रियों एवं ग्यारहवें मन की चेष्टाएँ गुरुदेव के श्रीचरणों में समर्पित कर रहे हैं…
करोमि यद् यद् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ।।
- ‘शरीर से, वाणी से, मन से, इन्द्रियों से, बुद्धि से अथवा प्रकृति के स्वभाव से जो-जो करते हैं वह सब समर्पित करते हैं । हमारे जो कुछ कर्म है,हे गुरुदेव सब आपके श्रीचरणों में समर्पित है । हमारा कपिन का भाव, हमारा भोक्तापन का भाव आपके श्रीचरणों में समर्पित है । इस प्रकार ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु की कृपा को, ज्ञान को, आत्मशान्ति को हृदय में भरते हुए उनके अमृतवचनों पर अडिग बनते हुए अन्तर्मुख होते जाओ.., आनन्दमय बनते जाओ…ॐ आनंद ! ॐ आनंद ! ॐ आनंद !
- इस प्रकार शिष्य मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार अपने सद्गुरुदेव का पूजन करके गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मना सकता है । करोड़ों जन्मों के माता-पिता, मित्र-सम्बन्धी जो न दे सके, सद्गुरुदेव वह हँसते-हँसते दे डालते हैं । हे गुरु पूर्णिमा ! हे व्यासपूर्णिमा ! तू कृपा करना…
- ‘गुरुदेव के साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये… मैं प्रार्थना करता हूँ, गुरुवर ! जब तक है जिंदगी, आपके श्रीचरणों में मेरी श्रद्धा बनी रहे ।
- वह भक्त ही क्या जो तुमसे मिलने की दुआ न करे ?
भूल प्रभु को जिंदा रहूँ कभी ये खुदा न करे !!
लगाया जो रंग भक्ति का उसे छूटने न देना ।
गुरु तेरी याद का दामन कभी छूटने न देना…
हर साँस में तुम और तुम्हारा नाम रहे प्रीति की यह डोरी कभी टूटने न देना….,
श्रद्धा की यह डोरी कभी टूटने न देना ।
बढ़ते रहें कदम सदा तेरे ही इशारे पर, गुरुदेव ! तेरी कृपा का सहारा छूटने न देना ।
सच्चे बनें और तरक्की करें हम, नसीबा हमारा अब रूठने न देना !!!
देती है धोखा और भुलाती है दुनिया, भक्ति को अब हमसे लुटने न देना ।
प्रेम का यह रंग हमें रहे सदा याद, दूर हों हम तुमसे यह कभी घटने न देना ?
बड़ी मुश्किल से भरकर रखी है करुणा तुम्हारी..
बड़ी मुश्किल से थाम कर रखी है श्रद्धा-भक्ति तुम्हारी…
कृपा का यह पत्र कभी फूटने न देना ।
लगाया जो रंग भक्ति का उसे छूटने न देना, प्रभु प्रीति की यह डोर कभी टूटने न देना !! - आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर हे गुरुदेव !
- आपके श्रीचरणों में अनंत कोटि प्रणाम… आप जिस पद में विश्रांति पा रहे हैं, हम भी उसी पद में विश्रांति पाने के काबिल हो जायें… अब आत्मा-परमात्मा से जुदाई की घड़ियाँ ज्यादा न रहें… ईश्वर करे कि ईश्वर में हमारी प्रीति हो जाय… प्रभु करे कि प्रभु के नाते गुरु-शिष्य का संबंध बना रहे…
- – ऋषि प्रसाद, अंक -127, 2003