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विनम्रता और कृतज्ञता- बच्चों में विकसित करने वाले महत्वपूर्ण गुण

विनम्रता और कृतज्ञता- बच्चों में विकसित करने वाले महत्वपूर्ण गुण

  • आज के समय में जहाँ अक्सर माता-पिता का ध्यान बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धियों, पाठ्येतर गतिविधियों और उनके लिए उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने पर केंद्रित होता है, वहाँ बच्चों में विनम्रता और कृतज्ञता जैसे नैतिक गुणों को विकसित करने का महत्व कभी-कभी कम हो जाता है ।
  • विनम्रता का अर्थ है दूसरों को सम्मान देना और उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करना । विनम्रता के गुण से हमारा व्यक्तित्व सुंदर बनता है, क्योंकि विनम्र होकर हम ग्रहण करना सीखते हैं और विनम्रता के कारण ही हम दूसरों से जुड़ पाते हैं ।
  • “शाखाओं का झुकना, उनके फलयुक्त होने का चिन्ह है” ।
  • इसी तरह कृतज्ञता भी एक बहुत आवश्यक गुण है । कृतज्ञता विनम्रता की एक सशक्त अभिव्यक्ति है।

बच्चों की परवरिश में इन गुणों का स्थान कितना जरूरी ?

  • माता- पिता को यह बात समझनी होगी कि यदि वे चाहते हैं कि बच्चे बड़े होकर उद्यमी, उपयोगी और सहयोगी व्यक्ति बनें और समाज में सकारात्मक योगदान दें तो बच्चों में बाल्यावस्था से ही विनम्रता और कृतज्ञता जैसे गुणों को विकसित करना होगा ।
  • बच्चों के भौतिक विकास एवं उनकी उन्नति के लिए उनमें इन नैतिक गुणों का बीजारोपण, छोटी उम्र से ही करना जरूरी है ताकि बच्चे जीवनपर्यंत विनम्रता का अनुसरण करें, हमेशा अपने माता-पिता, गुरु, ईश्वर और समाज के प्रति कृतज्ञ रहें ।

विनम्रता का सद्गुण : असंभव को भी संभव बना सकता है

  • हमारे स्वभाव में विनम्रता है तो हम सबको अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं । अगर हमारे स्वभाव में विनम्रता है और सामने हमारा दुश्मन भी है तो वो हमारा अहित कभी नहीं कर सकता ऐसा उसका ह्रदय परिवर्तन हो जायेगा ।
  • गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कथा तो सबने सुनी ही है कि किस तरह गौतम बुद्ध की शालीनता और विनम्रता के आगे डाकू अंगुलिमाल अपना क्रूर स्वभाव त्यागकर बुद्ध के शिष्य और बाद में संत बन गये ।
  • विनम्रता की मूर्ति देखनी हो तो सबके आदर्श श्रीरामचन्द्रजी हैं । परशुरामजी खूब क्रोध में बोलते हैं फिर भी श्रीराम बड़ी विनम्रता से कहते हैं : “मैं दशरथनंदन राम हूँ और आप तो श्री परशुरामजी हैं, महेन्द्र पर्वत पर तप करते हैं । दास राम आपको प्रणाम करता है । राम जी से कोई मिलने आता था तो वे यह नहीं सोचते थे कि वो पहले बात करें या मुझे प्रणाम करें । सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से बात शुरू कर देते थे ।
    – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

बच्चों के जीवन में विनम्रता और कृतज्ञता को कैसे विकसित करें ?

  • बच्चे अक्सर अपने आस-पास के लोगों, विशेषकर अपने माता-पिता के व्यवहार का अनुकरण करके सीखते हैं। बच्चों में विनम्रता और कृतज्ञता पैदा करने का सबसे अच्छा तरीका है माता-पिता इन गुणों को अपने जीवन में अपनाएँ ।
  • माता-पिता अपनी गलतियों और आलोचना को स्वीकार करके, दूसरों के साथ दयालुता और सम्मान के साथ व्यवहार करके विनम्रता प्रदर्शित कर सकते हैं । माता-पिता व्यवहार में कुशल रहें और दूसरों से जब भी मिले-जुलें तो उन्हें धन्यवाद दें, आभार और कृतज्ञता प्रकट करें । जीवन में जो और जितना भी मिला है उसके लिए भगवान को, अपने गुरु को धन्यवाद दें । जब बच्चे अपने माता-पिता को ऐसा करते हुए देखते हैं, तो उनमें इन मूल्यों को आत्मसात करने और उन्हें अपने जीवन में लागू करने की अधिक संभावना होती है ।
  • विनम्रता और कृतज्ञता के गुण बच्चों में लाने के लिए माता-पिता अपने बच्चों के साथ हर वर्ष 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें ।
  • मातृ पितृ पूजन दिवस के प्रणेता, संत श्री आशारामजी बापू कहते हैं : “गणेशजी ने जब ‘सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमयः पिता’ करके शिव-पार्वती की 7 प्रदक्षिणा की, दंडवत् प्रणाम किया तो गणेशजी पर शिवजी और माँ पार्वती ने कृपा बरसायी और गणेशजी प्रथम पूजनीय हुए, दुनिया जानती है ।
  • इसलिए मैंने ‘वेलेंटाइन डे’ का विरोध नहीं परन्तु ‘वेलेंटाइन डे’ के कुप्रभावों से बचकर माता-पिता का सत्कार करने को कहा ।”
  • बच्चे हमारा आदर करें ऐसा सभी चाहते हैं और मैं वही कर रहा हूँ । विश्वमानव को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ का फायदा मिले, ऐसा हमने अभियान शुरु किया है । ( मातृ-पितृ पूजन दिवस की शुरुआत संत श्री आशारामजी बापू द्वारा 2006 में की गयी थी ।)

मातृ पितृ पूजन से विनम्रता और कृतज्ञता की भावना कैसे सुदृढ़ होगी ?

  • माता-पिता का पूजन करने से माँ-बाप और बच्चों में परस्पर प्रेमभाव उमड़ता है । बच्चे माँ-बाप को गले लगाते हैं तो माता-पिता भावविभोर होकर अपने बच्चों पर अनंत-अनंत प्रेम और आशीर्वाद बरसाते हैं ।
  • माँ-बाप ने पूरा जीवन कितने संघर्ष से बच्चों को पाला-पोसा, कितने दुःख सहकर माता ने जन्म दिया, बड़ा किया और पिता ने कितनी कठिनाइयों से भरण-पोषण किया है । मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाकर बच्चे अपने माँ-बाप द्वारा किये गये संघर्ष व उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं ।
  • माता-पिता का पूजन करने से न केवल बच्चों में ये नैतिक गुण विकसित होते हैं बल्कि माँ-बाप का पूजन कर बच्चे अपने लिए लौकिक और पारलौकिक सफलता के द्वार खोल लेते हैं । साथ ही पाश्चात्य अन्धानुकरण के कारण जो 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे के नाम पर लाखों-लाखों बच्चे-बच्चियों की जिंदगी तबाह हो रही है उससे भी बच्चों की रक्षा होती है ।
  • अगर माता-पिता चाहते हैं कि बुढ़ापे में उनके बच्चे उनसे उद्दण्ड व्यवहार न करें, उनको नर्सिंग होम में, वृद्धाश्रम में, अनाथाश्रम में न छोडें, उनसे मुँह न मोडें तो इसके लिए माता-पिता हर साल 14 फरवरी को अपने बच्चों के साथ मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें और उनकी भौतिक उन्नति के साथ-साथ नैतिक उन्नति की ओर भी अपना ध्यान केन्द्रित करें ।

हर देश, धर्म, जाति और पंथ, सबका यही आह्वान ।
आदर माता-पिता-प्रभु-गुरु का, करके बनें महान ।।

कैसे मनायें मातृ-पितृ पूजन दिवस ?

मातृ-पितृ पूजन दिवस की संपूर्ण जानकारी

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