Navratri 2023 Puja Path Vidhi at Home in Hindi

नवरात्रि के 9 दिनों में विद्यार्थी सुबह 1 कटोरी खीर लेकर यज्ञ कुंड में गायत्री मंत्र बोलते हुए थोड़ी-थोड़ी खीर की 108 आहुति डालें तो बच्चे खूब होशियार होंगे ।

अगर काम धंधे में सफलता नहीं मिलती हो या विघ्न आते हों तो शुक्ल पक्ष की अष्टमी हो.. बेल के कोमल-कोमल पत्तों पर लाल चन्दन लगाकर माँ जगदम्बा को अर्पण करें…. ।  मंत्र बोलें ” ॐ ह्रीं नमः । ॐ श्रीं नमः “ और थोड़ी देर बैठकर प्रार्थना और जप करेंगे तो उससे राजयोग बनता है ।

गुरुमंत्र का जप और कभी-कभी ये प्रयोग करें । नवरात्रियों में तो खास करें । देवी भागवत में वेद व्यास जी ने बताया है:
दुःख दर्द बढ़ गए, परेशानियाँ बढ़ गईं, रोग बीमारियाँ बढ़ गईं, महंगाई बढ़ गयी, तो क्या करना चाहिए ?

देवी भागवत के तीसरे स्कन्द में नवरात्रि का महत्व वर्णित किया है । मनोवांछित सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए देवी की महिमा सुनायी है, नवरात्रि के 9 दिन उपवास करने के शारीरिक लाभ बताये हैं ।

Health Benefits of Navratri Puja for 9 Days

1. शरीर में आरोग्य के कण बढ़ते हैं ।

2. जो उपवास नहीं करता वो रोगों का शिकार हो जाता है, जो नवरात्रि का उपवास करता है, तो भगवान की आराधना होती है, पुण्य तो बढ़ता ही है, लेकिन शरीर का स्वास्थ्य भी वर्ष भर अच्छा रहता है ।

3. प्रसन्नता बढ़ती है ।

4. द्रव्य की वृद्धि होती है ।

5. लंघन और विश्रांति से रोगी के शरीर से रोग के कण ख़त्म होते हैं ।
नौ दिन नहीं तो कम से कम 7 दिन / 6 दिन /5 दिन या आख़िरी के 3 दिन तो जरुर उपवास रख लेना चाहिए ।

देवी भागवत में आता है कि देवी की स्थापना करनी चाहिए । नौ हाथ लम्बा भण्डार ( मंडप/स्थापना का स्थान) हो ।

मकान बनवाते समय याद रहे…मकान बनवाते हों तो~

1. कमरा साड़े तेरह फ़ीट (13.5 फ़ीट) लम्बा और साड़े दस फ़ीट ( 10.5 फ़ीट) आड़ा बनाओ ।

2. खिड़की बनाओ तो दक्षिण की तरफ हो उत्तम- ज्यादा फायदा, पश्चिम की तरफ हो थोड़ी खुले, आरोग्य के लिए पश्चिम की हवा अच्छी नहीं । पूरब की तरफ हो तो ठीक-ठीक लेकिन दक्षिण से हवा आये और उत्तर से जाये तो उत्तम

3. भगवती रुप में कन्या का पूजन हो (पूजन करने के लिए कन्या कैसी हो इसका वर्णन बापूजी ने किया) और प्रेरणा देने वाली ऐसी कन्या को भगवती समझ कर पूजन करने से दुःख मिटता है, दरिद्रता मिटती है ।

1st Day of Navratri:

नवरात्रि के पहले दिन स्थापना, देव वृत्ति की कुंवारी कन्या का पूजन हो ।

2nd Day of Navratri:

नवरात्रि के दूसरे दिन 3 वर्ष की कन्या का पूजन हो, जिससे धन आएगा ,कामना की पूर्ति के लिए ।

3rd Day of Navratri:

नवरात्रि के तीसरे दिन 4 वर्ष की कन्या का पूजन करें, भोजन करायें तो कल्याण होगा, विद्या मिलेगी, विजय प्राप्त होगा, राज्य मिलता है ।

4th Day of Navratri:

नवरात्रि के चौथे दिन 5 वर्ष की कन्या का पूजन करें और भोजन करायें । रोग नाश होते हैं ।

या देवी सर्व भूतेषु आरोग्य रुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

इस मंत्र का जप करें; पूरे साल आरोग्य रहेगा ।

5th Day of Navratri:

नवरात्रि के पांचवे दिन 6 वर्ष की कन्या को काली का रुप मानकर पूजन करके भोजन कराएँ तो शत्रुओं का दमन होता है ।

6th Day of Navratri:

नवरात्रि के छठें दिन 7 वर्ष की कन्या का चंडी का रुप मानकर पूजन करके भोजन कराएँ तो ऐश्वर्य और धन सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।

7th Day of Navratri:

नवरात्रि के सातवें दिन 8 वर्ष की कन्या का शाम्भवी रुप में पूजन कर के भोजन कराएँ तो किसी महत्वपूर्ण कार्य करने में , शत्रु पर धावा बोलने में सफलता मिलती है ।

8th Day of Navratri:

नवरात्रि की अष्टमी को दुर्गा पूजा करनी चाहिए । सभी संकल्प सिद्ध होते हैं । शत्रुओं का संहार होता है ।

9th Day of Navratri:

नवरात्रि की नवमी को 10 साल की कन्या का पूजन भोजन कराने से सर्वमंगल होगा, संकल्प सिद्ध होंगे, सामर्थ्यवान बनेंगे, इस लोक के साथ परलोक को भी प्राप्त कर लेंगे, पाप दूर होते हैं, बुद्धि में औदार्य आता है, नारकीय जीवन छुट जाता है, हर काम में, हर दिशा में सफलता मिलती है । नवरात्रि में पति-पत्नी का व्यवहार नहीं, संयम से रहें ।

( परम पूज्य सदगुरूदेव बताते हैं कि संत लालजी महाराज को नवरात्रि में देवी माँ ने प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे ।

जब महाराज जी ने देवी माता को पूछा कि ‘रातभर लोग जागकर गरबा करते हैं… वहाँ नहीं जाती और मुझे दर्शन देती हैं तो माता मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए अंतर्धान हो गयीं..’)

देवी-देवता, गन्धर्व, किन्नर ये होते हैं । कश्मीर में सरस्वती माता का एक मंदिर है, उसके ४ दरवाजे हैं । पूरब, पश्चिम और उत्तर का दरवाजा खुला रखते हैं , लेकिन दक्षिण का दरवाजा तभी खुलेगा जब दक्षिण से कोई महापुरुष आएगा ।

तो शंकराचार्य जी गए और उन्होंने पूजन करके दरवाजा खोला और अन्दर जाकर गद्दी पर बैठने लगे तो सरस्वती माँ स्वयं प्रगट हो गयीं और बोलीं कि ‘तुम कैसे इसके अधिकारी हो गए, तुमने तो ऐसा काम किया है कि विद्वान और मूर्ख का भी ।’

तो शंकराचार्य जी बोले कि, “वो मूर्खता नहीं थी माँ, वो तो सूक्ष्म शरीर का उपयोग करके अनुभव कराने के लिए ऐसा किया था । मैं तो तुम्हारा बालक हूँ माँ” ।

माँ ने कहा कि “धन्य हो” ! वो दरवाजा कश्मीर के मंदिर में आज अभी भी खुला है ।