• अहमदाबाद आश्रम की वाटिका में बगीचे की सेवा करने वाले संतोष भाई अपने जीवन का एक प्रसंग बताते हुए कहते हैं एक बार पूज्य बापूजी प्रातःभ्रमण करते हुए गौशाला पधारे थे तो वहाँ का फाटक देखकर पूछा- “यह तिरछा कैसे हो गया ?”
  • सेवक- ‘‘ट्रैक्टर चलाते समय चालक से धक्का लग गया था ।”
  • ‘उसको बोलना ध्यान रखा करे । लो इसको सीधा करो ।’
  • उस फाटक का एक हिस्सा झुक गया था तो बापूजी बोले :- ‘जो हिस्सा ऊपर उठ गया है । उसको तार से बाँधकर नीचे किसी बँटी से कस दो तो फाटक सीधा हो जायेगा ।’
  • ‘इतना बोलकर पूज्य श्री घूमने चले गये ।
  • ‘ऐसा तो मैं कर चुका हूँ मगर सीधा नहीं हुआ।…’ ऐसा सोच के मैं अपनी बुद्धि चलाने लगा । बहुत कोशिशें की, फाटक के नीचे खुदाई भी कर दी, जिस खम्भे पर वह लगा था उसको सीधा कर दिया, ठोका-पीटा परंतु कुछ नहीं हुआ । दूसरों की मदद भी खूब ली पर जो करना चाहिए वह नहीं किया ।
  • बापूजी लौटकर आने वाले थे, सोचा कि ‘अब एक बार वैसा ही करके देखता हूँ जैसा गुरुजी ने बताया था ।’ फाटक को तार से 4-5 लपेटा मारकर खींचा और बाँध दिया तो एकदम सीधा हो गया । मुझे हमेशा के लिए एक सीख मिल गयी कि गुरु-उपदिष्ट मार्ग पर चलने में ही जीवन की सफलता है ।
  • सद्गुरु की आज्ञा वास्तव में उनका आशीर्वाद ही होती है । वे जो बताते हैं, संकेत करते हैं उसमें हमारी उन्नति का रहस्य छिपा होता है । वे हमारे लिए जो उचित समझते हैं वह हमें जँचे चाहे न जँचे, हमारे लिए वही हितकर होता है । ‘गुरु भक्ति योग’ शास्त्र में आता है कि ‘सदैव याद रखो, उच्चात्मा गुरु को जो अच्छा लगता है वह आपकी पसंदगी की अपेक्षा अधिक हितकर होता है ।’
“विचार से (अपनी बुद्धि से कुछ मिलावट किये बिना) सद्गुरु के आदेश का पालन करें, ऐसा करने से काम बन जायेगा ।”
– श्री आनंदमयी माँ