Benefit of Mata Pita Sanskar on Anandmayi Maa: Matru Pitru Pujan Divas 2022 Special
- आओ मनाएँ मातृ-पितृ पूजन दिवस : 14th February
- माता-पिता, दादा-दादी आदि के संस्कारों का ही प्रभाव संतान पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्षरूप से पड़ता है ।
- श्री आनंदमयी माँ के पिता विपिनबिहारी भट्टाचार्य एवं माता श्रीयुक्ता मोक्षदासुंदरी देवी (विधुमुखी देवी) – दोनों ही ईश्वर-विश्वासी,भक्तहृदय थे । माता जी के जन्म से पहले व बहुत दिनों बाद तक इनकी माँ को सपने में तरह-तरह के देवी-देवीताओं की मूर्तियाँ दिखती थीं और वे देखतीं कि उन मूर्तियों की स्थापना वे अपने घर में कर रही हैं ।
- श्री आनंदमयी माँ के पिता विपिनबिहारी भट्टाचार्य एवं माता श्रीयुक्ता मोक्षदासुंदरी देवी (विधुमुखी देवी) – दोनों ही ईश्वर-विश्वासी,भक्तहृदय थे । माता जी के जन्म से पहले व बहुत दिनों बाद तक इनकी माँ को सपने में तरह-तरह के देवी-देवीताओं की मूर्तियाँ दिखती थीं और वे देखतीं कि उन मूर्तियों की स्थापना वे अपने घर में कर रही हैं । आनंदमयी माँ के पिताजी में ऐसा वैराग्यभाव था कि इनके जन्म के पूर्व ही वे घर छोड़कर कुछ दिन के लिए बाहर चले गये थे और साधुवेश में रह के हरिनाम-संकीर्तन,जप आदि में समय व्यतीत किया करते थे ।
- माता जी के माता-पिता बहुत ही समतावान थे । इनके तीन छोटे भाइयों की मृत्यु पर भी इनकी माँ को कभी किसी ने दुःख में रोते हुए नहीं देखा । माता-पिता, दादा-दादी आदि के संस्कारों का ही प्रभाव संतान पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्षरूप से पड़ता है । माता जी बचपन से ही ईश्वरीय भावों से सम्पन्न, समतावान व हँसमुख थीं ।
- आनंदमयी माँ को आध्यात्मिक संस्कार तो विरासत में ही मिले थे अतः बचपन से ही कहीं भगवन्नाम-कीर्तन की आवाज सुनाई देती तो इनके शरीर की एक अनोखी भावमय दशा हो जाती थी । आयु के साथ इनका यह ईश्वरीय प्रेमभाव भी प्रगाढ़ होता गया । लौकिक विद्या में तो माता जी का लिखना-पढ़ना मामूली ही हुआ । वे विद्यालय बहुत कम ही गयीं । परंतु संयम, नियम-निष्ठा से व गृहस्थ के कार्यों को ईश्वरीय भाव से कर्मयोग बनाकर इन्होंने सबसे ऊँची विद्या – आत्मविद्या, ब्रह्मविद्या को भी हस्तगत कर लिया ।