‘संयम’ और ‘दृढ़ संकल्प’ विद्यार्थी-जीवन की नींव है । जिसके जीवन में संयम है, वह हँसते-खेलते बड़े बड़े कार्य कर सकता है।
हे मानव !! तू अपने को अकेला मत समझ, ईश्वर और गुरु, दोनों का ज्ञान तेरे साथ है। जो महान बनना चाहते हैं, वे कभी फरियादात्मक चिन्तन नहीं करते । हे मानव तू दृढ़ संकल्प कर कि मैं अपना समय व्यर्थ नहीं गवाऊँगा। अगर युवती है तो युवान की तरफ और युवान है तो किसी युवती की तरफ विकारी निगाह नहीं उठायेंगे ।
१३ वर्ष के बालक रणजीत सिंह में पिता महासिंह ने संकल्प भर दिया कि मेरा बेटा तो कोहिनूर हीरा ही पहनेगा। उस समय कोहिनूर अफगानिस्तान में था। इस दृढ़ संकल्प के बल से ही बालक रणजीत सिंह ने बड़ा होने पर अफगानिस्तान में जाकर शत्रुओं को परास्त किया और वहाँ से कोहिनूर लाया और पहनकर दिखा दिया।
ऐसे ही ५ वर्ष के दृढ़ निश्चयी बालक ध्रुव को जब देवर्षि नारदजी से मंत्र मिला तो वह मंत्रजप में इतनी दृढ़ता से लगा रहा कि ६ महीने में ही उसने सारे विश्व के स्वामी भगवान नारायण को प्रकट करके दिखा दिया ।
हे शिष्यों ! हलके व संस्कारविहीन बच्चों और विद्यार्थियों का अनुकरण मत करना, बल्कि तुम तो संयमी-सदाचारी वीर पुरुषों एवं पवित्र भक्त आत्माओं, योगी, महात्माओं का अनुसरण करना।
मीरा के जीवन में कितने विघ्न और बाधाएँ आयीं, फिर भी उसने भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। गार्गी को कितनी कठिनाइयाँ सहनी पड़ीं, फिर भी उसने आत्म-साक्षात्कार कर लिया। ऐसे ही हजार-हजार विघ्न बाधाएँ आ जाने पर भी जो संयम, सदाचार, ध्यान, भगवान की भक्ति व सेवा का रास्ता नहीं छोड़ता, वह संसार में बाजी जरूर मार लेता है।
आप भी अपनी महानता को जगायें। भगवान एवं भगवत्प्राप्त महापुरुषों का आशीर्वाद आपके साथ है!!
हरि ॐ… हरि ॐ….