Jaisi Sangat Waisi Rangat [Sang Ka Rang]. Sang Ka Prabhav
➠ संग का बड़ा प्रभाव पड़ता है। यदि संत, सद्गुरु एवं भगवान का संग मिलता है तो वह उन्नति के शिखर पर ले जाता है और यदि दुर्भाग्य से किसी स्वार्थी-दुराचारी का संग मिल जाता है तो बरबादी की खाई में जा गिरते है । अतः संग करने में सावधान रहें ।
➠ आज कल दोस्त भी ऐसे ही मिलते हैं । कहते है: ”चलो मित्र ! सिनेमा देखते है । मैं खर्च करता हूँ….चल ‘ब्लू फिल्म’ देखते हैं।”
➠ दस…बारह साल के लड़के ‘ब्लू फिल्म’ देखने लग जाते हैं । इससे उनकी मानसिक दुर्दशा ऐसी हो जाती है, वे ऐसी कुचेष्टाओं से ग्रस्त हो जाते हैं कि हम उसे व्यासपीठ पर बोल भी नही सकते ।
➠ वे लड़के बिचारे अपना इतना सर्वनाश कर डालते है कि बाप धन, मकान, धन्धा आदि दे जाते हैं फिर भी कोमलवय में चरित्रभ्रष्ट व उर्जानाश के कारण वे उन्हें संभाल नही पाते हैं । वे न तो अपना स्वास्थ्य संभाल पाते है, न माता-पिता की सेवा कर पाते है, न ही माता-पिता का आदर कर पाते है और न ठीकसे उनका श्राद्धकर्म कर पाते हैं ।
➠ अपने ही विकारी सुख में वे इतना खप जाते हैं कि इनके जीवन मे कुछ सत्व नही बचता । उनको जरासा समझाओ तो वे चिढ़ जाते हैं….बोलो तो नाराज हो जाते है, घर छोड़कर भाग जाते है…डॉटो तो आत्महत्या के विचार करने लगते हैं ।
➠ आत्महत्या के विचार आते है तो समझो यह मन की दुर्बलता व कायरता की पराकाष्ठा हैं । बचपन मे वीर्यनाश खूब हुआ हो तो बार-बार आत्महत्या के विचार आते हैं । वीर्यवान एवं संयमी पुरुष को आत्महत्या के विचार नही आते हैं ।
➠ आत्महत्या का विचार वे ही लोग करते है जिनकी वीर्यग्रंथि प्रारम्भ में ही अत्याधिक वीर्यस्राव के कारण मजबूत होने से पहले ही शिथिल एवं कमजोर हो गयी हो । यही कारण है कि हमारे देश की अपेक्षा परदेश में आत्महत्याए अधिक होती है ।
➠ हमारे देश में भी पहले की अपेक्षा आज कल आत्महत्याए ज्यादा होने लगी है क्योंकि फिल्मो के कुप्रभाव से बच्चे-बच्चियाँ वीर्यस्राव आदि के शिकार हो गए हैं ।
➠ विद्यार्थियों का धर्म है ब्रह्मचर्य का पालन करना, नासाग्र दृष्टि रखना । पहले के जमाने में पाँच साल का होते ही बालक को गुरुकुल में भेज दिया जाता था । पच्चीस साल का होने तक वह वही रहता था, ब्रह्मचर्य का पालन करता था, विद्याध्ययन एवं योगाभ्यास करता था । जब स्नातक होकर गुरुकुल से वापस आता तब देखो तो शरीर सुडौल एवं मजबूत…. कमर में मूँज की रस्सी बँधी हुई और उस रस्सी से लंगोट खींची हुई होती थी । वे जवान बड़े वीर, तंदुरुस्त एवं स्वस्थ होते थे ।
➠ अश्लील फिल्मों,गंदे उपन्यासों एवं कुसंग ने आज नौजवानों के चरित्र बल का सत्यानाश कर दिया है। सावधान ! इन बुराइयों से बचो,संयम की महिमा समझो एवं संत-महापुरुषों का संग करो ताकि पुनः अपने पूर्वजों जैसा आत्मबल,चरित्रबल एवं नैतिक बल अर्जित कर सको।
~ यौवन सुरक्षा – 2