➠ विद्यार्थियों को चाहिए कि अपने चरित्र पर ध्यान दें। धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ-कुछ.. किंतु चरित्र गया तो सब कुछ गया।

➠ विद्यार्थी सत्यनिष्ठ, स्नेही, साहसी व निर्मल स्वभाव वाला तो सहज में हो सकता है लेकिन कुसंग के कारण अपना सर्वनाश कर देता है ।

➠ गंदी, चरित्र भ्रष्ट करने वाली फिल्मों के द्वारा चरित्र बिगड़ता है । गंदे विज्ञापन, उपन्यास, चरित्र भ्रष्ट करने वाला साहित्य और संग बंद हो जाए तो राम राज्य हो जाए ।

➠ आजकल के अश्लील चलचित्रों ने तो युवक-युवतियों का ब्रह्मचर्य ही नष्ट कर दिया है ! यदि ब्रह्मचर्य और संयम हो तो बीमारीयाँ नहींवत् हो जाती हैं, डॉक्टरों के अधीन नहीं बनते । विद्यार्थी लगातार कई वर्ष अनुत्तीर्ण ही नहीं होते।

➠  ब्रह्मचर्य और संयम के अभाव में उनका बल, बुद्धि, तेज हीन होने के कारण मस्तिष्क काम करने से थक जाता है, परिणाम यह होता है कि वे कई वर्ष लगातार परीक्षाओं में अनुत्तीर्ण होते रहते हैं और बार-बार उन्हीं कक्षाओं में उत्तीर्ण होने की कोशिश करते रहते हैं।

➠ गंदे सिनेमा ने तो सत्यानाश कर दिया है । देखो कि इस सिनेमा से कितने घर बरबाद हो गये हैं । बुरे चित्र एवं वासनाओं से भरे गाने चित्त को कितना खराब करते हैं ! मन खराब तो शरीर खराब । पैसे भी दो और बीमारियाँ भी लो, ऐसे सिनेमा से क्या लाभ ! आजकल केवल पैसे कमाने के लिए बुरी से बुरी फिल्म का निर्माण करके लोगों का खाना-खराब किया जा रहा है।

➠ एक बार विनोबा को सिनेमा में ले गये। वहाँ बुरे चलचित्र दिखाने लगे तो विनोबा दरी बिछा कर सो गये। तुम भी ऐसी फिल्म न देखो। सिनेमा देखने से विचार, संकल्प खराब होते हैं।

➠ अतः चरित्र ही है जो मनुष्य को बनाता है।

~ पूज्यपाद भगवत्पाद साँईं श्री श्री लीलाशाह जी महाराज

माँ तू कितनी महान साहित्य से