जो व्यक्ति अपनी वीर्यरूपी ऊर्जा को संभालने की अक्ल नहीं रखता, वह मुर्गा छाप बच्चों को जन्म देगा अथवा परिवार-नियोजन के साधनों का उपयोग करके अपना और अपनी पत्नी का सत्यानाश करता ही रहेगा। फिर उसमें सहनशक्ति, आरोग्यता, निर्भयता, ध्यान करने की लगन और मुक्ति के मार्ग पर चलकर परमात्मा को पाने की इच्छा नहीं रहेगी क्योंकि वह अंदर से थक चुका होगा।
आज का युवान समझता ही नहीं कि वीर्यनाश करके वह अपनी अमूल्य शक्ति का अपने ही हाथों से नाश कर रहा है। जो व्यक्ति नीति और मर्यादा के बिना अपनी इच्छाओं को पोसने लगता है उसका मन निर्बल हो जाता है, बुद्धि विनाश की तरफ जाने लगती है और शरीर बीमारियों का शिकार हो जाता है। यदि तुम कामनाओं को व्यर्थ पोसते रहोगे तो तुम्हारे न चाहने पर भी ये तीन शत्रु- काम, क्रोध और लोभ तुम्हें गिरा देंगे।