एक बार महात्मा गांधी राजकोट में सौराष्ट्र काठियावाड़ राज्य प्रजा परिषद के सम्मेलन में भाग ले रहे थे । वह गणमान्य व्यक्तियों के बीच मंच पर बैठे थे ।उनकी दृष्टि सभा में बैठी एक वृद्ध सज्जन पर पड़ी । अचानक वे अपने स्थान से उठे और लोगों को देखते-देखते उन वृद्ध महोदय के पास जा पहुँचे ।
सभी लोग चकित थे कि गांधीजी आखिर यह क्या कर रहे हैं ! गांधीजी ने उन वृद्ध सज्जन के चरण स्पर्श किए और उन्हीं पास बैठ गए । आयोजकों ने जब उनसे मंच पर चलने की प्रार्थना की तब वे बोले : “यह मेरे गुरुदेव हैं । मैं अपने गुरुदेव के चरणों में बैठकर ही सम्मेलन की कार्यवाही का अवलोकन करूँगा। वे नीचे बैठें और मैं ऊपर मंच पर यह कैसे हो सकता है ।”
सम्मेलन की समाप्ति पर उन गुरु ने गांधीजी को आशीर्वाद देते हुए कहा : तुम जैसा निरभिमानी व्यक्ति एक दिन संसार के महान पुरुषों में स्थान बनाएगा ।
पूरी सभा गांधीजी का अपने गुरुदेव के प्रति ऐसा आशीर्वाद देखकर हर्ष से अभिभूत हो उठी । गुरु का आदर ज्ञान का आधार है और ज्ञान का आदर अपने मनुष्य-जीवन का आदर है और यही आदर व्यक्ति को महान बनाता है ।
अगर ऐसे दुर्लभ मनुष्य-जीवन में जैसे महान का विनाश करने वाले कोई पर परम गुरु ज्ञानी सतगुरु मिल जाए तो कहना है क्या उनका जितना आदर करें, कम ही है ।
➢ ऋषि प्रसाद, अगस्त 2018