Alexander Sikandar Death Story Se Kya Sikhe: परमात्मा अंतर्यामी रूप से भीतर से टोकते हैं और संतरूप में बाहर से सजग करते हैं लेकिन प्रमाद जगने नहीं देता।
कई राज्यों को जीतने के बाद सिकंदर [Alexander Sikander] अपने को अजेय समझने लगा था । उसने एक दिन अपने मित्र से कहा : “मेरा मुकाबला अब दुनिया की कोई भी ताकत नहीं कर सकती ।”
कुछ ही महीने बाद सिकंदर बीमार पड़ गया । बड़े-बड़े नामी हकीम उसके उपचार में लग गये फिर भी बीमारी बढ़ती ही गयी अंत में राज्य के प्रमुख हकीम ने कहा : “अब बादशाह का जीवन बचाना मुश्किल है ।”
सिकंदर ने अपने मंत्री, सेनापति आदि को बुलाकर आदेश दिया : “कितनी भी दौलत खर्च हो जाय, मेरा जीवन बचाने का प्रयास करो ।”
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मंत्री ने कहा : “सम्राट ! हमारे पास इतनी दौलत है कि हम कीमती-से कीमती चीज-वस्तु, दवाइयाँ खरीद सकते हैं लेकिन अफसोस ! धन के बल पर जीवन खरीदा नहीं जा सकता, साँसों को बढ़ाया नहीं जा सकता ।
सेनापति ने कहा : “सम्राट ! हमारी सेना आज तक कितने ही बड़े-बड़े दुश्मनों को नेस्तनाबूद कर चुकी है किंतु… मौत ऐसी कड़वी सच्चाई है कि उसके आगे बड़ी-से-बड़ी फौज की भी कुछ नहीं चलती चाहे फिर वह सैनिकों की हो या हकीमों की । इलाज तो मर्ज का होता है, मौत का नहीं । मौत एक-न-एक दिन शरीर को ग्रास बनाकर ही रहती है ।
सेनापति के इन शब्दों ने सिकंदर के अंतर्मन को झकझोर दिया। ठंडी गहरी साँस लेते हुए वह सोचने लगा : ‘हे झूठे अहंकार ! तुझे धिक्कार है ! जिस धन-दौलत, सत्ता, ऐश्वर्य के लिए पूरा जीवन दाँव पर लगाया, जिसके बल पर तू फूले न समाता था, वह सब मिलकर भी इस शरीर को मौत से बचाने में असमर्थ है। धिक्कार है ऐसी जिंदगी को !”
कैसी विडम्बना है कि जो विश्व को जीतने निकल पड़ते हैं, वे भी यदि वेदांतनिष्ठ महापुरुषों के सत्संग से विमुख रहे तो शरीर को ही ‘मैं मानते रहते हैं और मौत के आगे बुरी तरह पछताते हुए हार जाते हैं ।
दूसरों से धन-सम्पदा इकट्ठा करने निकल पड़ते हैं लेकिन अपनी आयु, शांति, निश्चितता रूपी धन रोज लुटता जा रहा है इसका मूर्खों को भान ही नहीं रहता ! वह भान कराने वाले परमात्मा अंतर्यामीरूप से भीतर से टोकते हैं और संतरूप में बाहर से सजग करते हैं लेकिन प्रमाद जगने नहीं देता और अंतहीन ख्वाहिशें शांत, निश्चित होने नहीं देतीं ! अपने-आपके साथ कितनी भारी वंचना है यह !
क्या करिये क्या जोड़िये,थोड़े जीवन काज ।
छोड़ी-छोड़ी सब जात है, देह गेह’ धन राज ।।
हाड़ बढ़ा हरिभजन कर, द्रव्य बढ़ा कछु देय ।
अकल बढ़ी आत्मज्ञान पा, जीवन का फल एह ।।
➢ लोक कल्याण सेतु, मार्च 2020