सादा जीवन, सच्चा जीवन ।
जग में सबसे अच्छा जीवन ।।
- बिहार प्रांत के एक छोटे से ग़ाँव में राजेन्द्र नामक लड़का रहता था । अपनी माता से प्राप्त संस्कारों ने जहाँ राजेन्द्र में सादगी और सहजता के गुणों को पुष्ट किया और रामायण, महाभारत, श्रीमद् भगवद् गीता जैसे सद्ग्रंथों के स्वाध्याय ने विपत्तियों से घबराये बिना अपनी मर्यादा में रहते हुए सत्य के लिए संघर्ष करने की भावना भरी ।
- यह सरल स्वभाव और निष्कपट विद्यार्थी कलकत्ता जैसे बड़े शहर में आगे की पढ़ाई हेतु गया । राजेन्द्र सदा की तरह कुर्ता, पायजामा और टोपी पहने हुए अपनी हुए अपनी कक्षा में गया तो पाश्चात्य कल्चर से प्रभावित सभी विद्यार्थी उसका मखौल उड़ाने लगे । प्राध्यापक ने भी हाजिरी के समय राजेन्द्र का नाम न बोला, शायद उसे एक विद्यालय का लड़का समझा होगा ।
- अन्य विद्यार्थी उसे कहने लगे :”कहाँ से रस्सा तुड़ाकर भाग आये हो !” उसने बताया कि वह प्रेसिडेंसी कॉलेज का छात्र है और अपना नाम भी बताया । अब कक्षा के सब छात्र उसे बड़े आश्चर्य से देखने लगे । यह तो वही बालक निकला जो उस वर्ष कोलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम आया था । उन्होंने फिर उसका कभी मजाक नहीं उड़ाया । यही विद्यार्थी अपनी सादगी, सरलता, कर्तव्य परायणता, आत्मविश्वास व दृढ़ता के बल पर आगे चलकर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नाम से सुप्रसिद्ध हुए ।
- सीख :- जिनमें सरलता, सादगी, कर्तव्य परायणता जैसे दिव्य गुण होते हैं वे ही वे ही बड़े कार्य कर सकते हैं ।
- संकल्प :- हम भी दिखावे से दूर रहकर सादगी व सरलता से जीवनयापन करेंगे ।
- अभिभावकों से – आजकल के विद्यालयों में तो पेट भरने की चिन्ता में लगे रहने वाले शिक्षकों एवं शासन की दूषित शिक्षा-प्रणाली के द्वारा बालकों को ऐसी शिक्षा दी जा रही है कि बड़ा होते ही उसे सिर्फ नौकरी की ही तलाश रहती है । आजकल का पढ़ा-लिखा हर नौजवान मात्र कुर्सी पर बैठने की ही नौकरी पसन्द करता है । उद्यम-व्यवसाय या परिश्रमी कर्म को करने में हर कोई कतराता है । यही कारण है कि देश में बेरोजगारी, नशाखोरी और अपराधिक प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही हैं क्योंकि ‘खाली दिमाग शैतान का घर है।’ ऐसे में स्वाभाविक ही उचित मार्गदर्शन के अभाव में युवा पीढ़ी मार्ग से भटक गयी है । अतः बच्चों को बचपन से ही उचित मार्गदर्शन दें ।
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– लोक कल्याण सेतू, अप्रैल 2017