As You Sow, So Shall You Reap.

“हमारी मति-गति में योग्यता कम है इसलिए बोलते हैं : ‘यह अन्याय हो गया।’ नहीं-नहीं, कर्म की गति के अनुसार कौन-सा, किसका, क्या लेन-देन है- हम जानते नहीं।” -पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी

सदना नाम के एक भक्त पैदल जगन्नाथपुरी जा रहे थे। रात्रि को वे किसी गाँव में एक गृहस्थ के घर सो गये। मध्यरात्रि में घर की युवती महिला उठी एवं सदना के पास आकर अनेक प्रकार की कुचेष्टाएँ करने लगी।

सदना: “माता! यह क्या करती हो ?”

युवती को लगा कि मेरे पति के भय से यह मेरी बात नहीं मानता। उसने म्यान में से तलवार निकालकर अपने पति का सिर धड़ से अलग कर दिया व सदना से बोली :”देख, तेरा डर मैंने निकाल दिया । अब मुझे स्वीकार कर।”

सदना : “माता यह मेरे से नहीं होगा।”

“अगर तूने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तेरी खबर ले लूँगी।”

“यह बात तो मैं मान ही नहीं सकता हूँ।”

“तो देख ले मजा!” यह कहकर महिला ने अपने कपड़े फाड़ लिये, दरवाजे पर जोर-से सिर पटका और जोर-जोर से रोने लगी : “मैं तो मर गयी रे… मेरा तो सब लुट गया रे…”

उसकी आवाज सुनकर लोग इकट्ठे हो गये। खून से रँगी हुई तलवार उसने प्रांगण में फेंक दी थी।

लोगों ने पूछा : “क्या हुआ ?”

महिला  :”मैं तो लुट गयी रे… इस यात्री को खिलाया-पिलाया, घर में रखा और इसने रात्रि को मेरे पति का सिर काट दिया। अब मेरी इज्जत लूटने को आ रहा है, मुझे बचाओ।”

सदना को किसी ने जूते से तो किसी ने लकड़ी से मारा।
सदना पर मुकदमा चला और निर्णय सुनाया गया :”इसने हाथों से तलवार उठायी है एवम् पाप किया है तो इसके दोनों हाथ काट दो।”

सदना के दोनों हाथ काट दिये गये। सदना कीर्तन और प्रार्थना करते हुए चल पड़े। जगन्नाथ के पुजारी को स्वप्न आया कि ‘मेरा प्रिय भक्त आ रहा है, उसके दोनों हाथ कटे हुए हैं । जल्दी जाओ और यहाँ लाकर उसकी सेवा करो।

पुजारी पालकी लेकर गये और सदना का आदर- सत्कार करके उसमें बैठाकर ले आये। सदना ने भगवान जगन्नाथजी को दण्डवत् प्रणाम किया व भुजाएँ उठाकर भाव-विभोर हो जैसे ही कीर्तन करना शुरू किया, उसके दोनों हाथ पूर्ववत् ठीक हो गये ।

प्रभुकृपा से हाथ ठीक तो हुए पर मन में शंका बनी रही कि वे क्यों काटे गये थे ?

रात्रि को स्वप्न में सदना को प्रभु के दर्शन हुए।
सदना बोले :”प्रभु ! मैने क्या गुनाह किया कि मेरे हाथ कटवा दिये ? तुम्हारे राज्य में इतना अन्याय ?”

भगवान ने उन्हें बताया :”तुम पिछले जन्म में काशी में जंगल में झोपड़ी बनाकर जप-तप करते थे।
एक कसाई गाय को काटने के लिए उसका पीछा कर रहा था और तुमने उस गाय को अपने दोनों हाथ से पकड़कर रोक लिया था। उस गाय को कसाई ले गया एवं उसका गला काट दिया । वही गाय इस जन्म में कसाई की पत्नी बनी और उसने अपने पति की गर्दन काट दी। तूने दोनों हाथों को गाय के गले में डालकर उसे रोका था, इसी पाप से इस जन्म में तुम्हारे दोनों हाथ कट गये और इस दंड से तुम्हारे पाप का नाश हो गया। यह कर्म का सिद्धांत है, मैंने अन्याय नहीं किया। 

गहनो कर्मणा गति।

“कर्म की गति बड़ी गहन है।”

यह सुनकर सदना का हृदय भर उठा कि “भगवन्! क्या सुंदर व्यवस्था है! बाहर से दिखता है कि दुःख है, कष्ट है लेकिन वह कष्ट प्रारब्ध का है। तुम्हारी सृष्टि में अन्याय होता है ऐसा कहना भी गलती है।”

~लोक कल्याण सेतु/अग.-सित. २००६