सत्संग,संयम और नियम से ही मनुष्य महान बनता है । -पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री गुरुदास बैनर्जी एक बार वायसराय के साथ कानपुर से कलकत्ता के लिए यात्रा कर रहे थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय कमीशन संबंधी किसी आवश्यक चर्चा के लिए वायसराय ने उन्हें अपने ही डिब्बे में बुला लिया। बातचीत के मध्य भोजन का समय हुआ तो वायसराय ने उनसे भी भोजन पाने का अनुरोध किया ।

बैनर्जी साहब ने उत्तर दिया :- “मैं रेल में कुछ नहीं खाता। थोड़ा सा गंगाजल मैंने साथ में रखा है, वही पी लेता हूँ ।”

वायसराय को विश्वास नहीं हुआ । इतना प्रगतिशील व्यक्ति भी धार्मिक मान्यताओं का इतनी कट्टरता के साथ पालन कर सकता है !

उन्होंने कहा :- “तो फिर अपने लड़के को ही भोजन ग्रहण करने के लिए कहिए पर बच्चे ने भी इनकार करते हुए कहा :”मेरे पास घर की बनी हुई थोड़ी-सी मिठाई है, उसका नाश्ता कर लिया है । अन्य कोई वस्तु ग्रहण न करूंगा ।
वायसराय आश्चर्यचकित रह गए ।

उन्होंने कहा : “आप लोग उपवास कर रहे हैं तो मैं ही भोजन कैसे ग्रहण करूँ ?”

वायसराय की आज्ञा से इलाहाबाद में गाड़ी रोक दी गई । वहाँ गुरुदास जी ने अपने पुत्र सहित त्रिवेणी-स्नान किया व भोजन किया। फिर गाड़ी आगे बढ़ी।

लौटने पर वायसराय को धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा :”कुछ खा-पी लेने से किसी की जाति जाती हो इस संबंध में मेरा कोई तर्क नहीं पर इन नियमों के पालन साथ में संयम और अनुशासन की शिक्षा मिलती है। हमारे धर्म और संस्कृति में जो ऐसी बातें हैं उनको मैंने इसीलिए हृदय से स्वीकार किया है।”

✍🏻शिक्षा :- लोगों में आजकल स्वाद लोलुपता इतनी बढ़ गई है कि अपने मन-मति का अनादर कर अपनी निष्ठा को तोड़कर नियम तोड़ देते हैं । ऐसी भी क्या लोलुपता जो नियम-निष्ठा तुड़वा दे ! धनभागी हैं वे लोग जो कोई नियम-निष्ठा लेकर उसे निभाते हैं और अपना मनोबल एवं बुद्धिबल सुविकसित करते हैं । इसीलिए गाँधीजी “बापूजी” कहे जाते हैं । जो मन-इंद्रियों के दास नहीं, बेटे नहीं- वे ही बापू हैं ।

आप पूरे बापू नहीं बनो तो बापू के दुलारे तो बनो। अपने जीवन में कुछ तो नियम-निष्ठा लाओ।
करोगे ना हिम्मत !!!


📚लोक कल्याण सेतू/२००३/दिस.