लक्ष्य न ओझल होने पाये,कदम मिलाकर चल ।
सफलता तेरे चरण चूमेगी,आज नहीं तो कल ।।
- एक मुमुक्ष ने संत से पूछा :” महाराज मैं कौन सी साधना करूँ ?”
- संत बड़े अलमस्त स्वभाव के थे । उनकी हर बात रहस्यमय हुआ करती थी ।
- उन्होंने जवाब दिया : “तुम बड़े वेग से चल पड़ो तथा चलने से पहले यह निश्चित कर लो कि मैं भगवान के लिए चल रहा हूँ । बस, यही तुम्हारे लिए साधना है ।”
- “महाराज ! क्या मेरे लिए बैठकर करने की कोई साधना नहीं है ?”
- “है क्यों नहीं । बैठो और निश्चय रखो कि तुम भगवान के लिए बैठे हो ।”
- “भगवन ! मैं कुछ जप न करूँ ?”
- “करो, भगवन्नाम का जप करो और सोचो कि मैं भगवान के लिए जप कर रहा हूँ ।”
- “तो क्या क्रिया का कोई महत्व नहीं ? केवल भाव ही साधना है ?
- आखिर में अपने गूढ़ वचनों का रहस्योद्घाटन करते हुए संत ने कहा : “भैया ! क्रिया की भी महत्ता है परंतु भाव यदि भगवान से जुड़ा है और लक्ष्य भी भगवान ही हैं तो शबरी की झाड़ू-बुहारी भी महान साधना हो जाती है । हनुमानजी का लंका जलाना भी साधना हो जाती है । अर्जुन का युद्ध करना भी धर्म कार्य और पुण्य कर्म हो जाता है ।”
- सीख :-“सावधानी ही साधना है ।” ~लोक कल्याण सेतु, मई-जून 2007