रामैया नाम के एक व्यक्ति के बारे में नगरभर में यह प्रसिद्ध था कि ‘जो सुबह-सुबह रामैया की सूरत देख लेता है उसे दिनभर खाने को नहीं मिलता है ।’ इसलिए सुबह-सुबह कोई उसके सामने आना पसंद नहीं करता था ।

किसी तरह यह बात राजा कृष्णदेवराय तक पहुँच गयी । उसने सोचा, ‘इस बात की परीक्षा करनी चाहिए ।’

राजा ने रामैया को बुलवाकर रात को अपने साथ के कक्ष में सुला दिया और दूसरे दिन सुबह उठने पर सबसे पहले उसकी सूरत देखी ।

दरबार के आवश्यक काम निपटाने के बाद राजा भोजन के लिए अपने कक्ष में गया । राजा ने पहला ही कौर उठाया था कि कुछ जरूरी राजकार्य के लिए मंत्री बुलाने आया और राजा को फिर से दरबार में जाना पड़ा । राजा भोजन खुला ही छोड़ के चला गया । जब वह वापस आया तो उसे भोजन में मक्खी पड़ी दिखाई दी । देखते-ही-देखते उसका मन खराब हो गया और वह भोजन छोड़कर उठ गया । दोबारा भोजन तैयार होते-होते इतना समय बीत गया कि राजा की भूख ही मर गयी ।

राजा ने सोचा, ‘अवश्य ही रामैया मनहूस है, तभी तो आज सारा दिन भोजन नसीब नहीं हुआ ।’

राजा के मन में झूठी मान्यता बैठ गयी और उसके आधार पर उसने फैसला सुना दिया कि ‘इसको फाँसी दे दी जाय ।’

राजा के तरंगित मन से लिये गये निर्णय से एक निर्दोष नागरिक का जीवन समाप्त होने की कगार पर पहुँच गया ।

राजदरबार के अष्टदिग्गजों में से एक महाबुद्धिमान तेनालीराम को जब सारा वृत्तांत पता चला तो उन्होंने रामैया को धीरज बंधाया और उसके कान में कुछ शब्द कहकर आगे चले गये ।

फाँसी देने से पहले प्रहरियों ने रामैया से पूछा : “तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है ?” 

रामैया ने वही कह दिया जो तेनालीराम ने समझाया था । प्रहरी उसकी अनोखी इच्छा सुनकर चकित रह गये । उन्होंने रामैया की अंतिम इच्छा राजा को बतायी ।

सुनकर राजा सन्न रह गया । उसने विचार किया, ‘अगर रामैया ने लोगों के बीच यह बात कह दी तो अनर्थ हो जायेगा !’

उसने रामैया को बुलवाकर बहुत-सा पुरस्कार दिया और कहा : “यह बात किसी से मत कहना ।”

रामैया को तेनालीराम ने समझाया था : “तुम्हें फाँसी देने से पहले ये तुम्हारी अंतिम इच्छा पूछेंगे । तुम कहना, ‘मैं चाहता हूँ कि मैं जनता के सामने जाकर कहूँ कि मेरी सूरत देखकर तो खाना नहीं मिलता पर जो सवेरे-सवेरे महाराज की सूरत देख लेता है उसे तो अपने प्राण गंवाने पड़ते हैं ।”

सुनी-सुनायी बातों एवं अपने मन की उथल मान्यताओं के आधार पर किसी को दोषी मान बैठना कितना अनुचित होता है, यह सूझबूझ तेनालीराम की कुशाग्र, धर्मयुक्त बुद्धि ने राजा को प्रदान की ।

➢ लोक कल्याण सेतु, अक्टूबर 2017