जब घर में चोरी हो जाये तो स्वाभाविक ही घर के नौकर/नौकरानी पर शक होता है पर जब प्रभाशंकर पट्टणीजी के घर गहनों की चोरी होती है तब वे क्या करते हैं..?
इस दृष्टांत से जानेंगे ।

◆ भावनगर (गुज.) के दीवान प्रभाशंकर पट्टणीजी बड़े साधु-स्वभाव के व्यक्ति थे । महापुरुषों के ऊँचे ज्ञान का आदर उनके जीवन में स्पष्ट रूप से झलकता था ।

जब वे किसी काम से कुछ दिनों के लिए बाहर गये हुए थे तब उनके घर से गहनों की चोरी हो गयी ।

◆ पुलिस ने शक के तौर पर घर के पुराने नौकर को कैद में ले लिया । थोड़े दिनों बाद पट्टणीजी घर आये तो नौकर की पत्नी उनके पैर पकड़कर रोने लगी : “साहब ! हम गरीबों पर दया करो, उनको पुलिस से छुड़ा लाइये ।”

◆ महिला की करुण प्रार्थना सुन उन्होंने नौकर को छोड़ देने हेतु थाने में सूचना भेजी । पुलिस अधिकारी नौकर को लेकर उनके पास आया ।

पट्टणीजी ने पुलिस अधिकारी से कहा: “इसे हम बहुत समय से जानते हैं । यह तो सज्जन और ईमानदार व्यक्ति है । यह मुझे निर्दोष लगता है । इसे छोड़ दीजिये । मेरे मन में सोने के गहनों से मनुष्य की कीमत ज्यादा है । मनुष्य के बिना वस्तु-पैसों की क्या कीमत ?”

◆ पुलिस अधिकारी चला गया । दीवानजी की ये सारी बातें नौकर खड़े-खड़े सुन रहा था । उस समय दीवानजी के नेत्रों में नौकर के प्रति एहसान या दया का भाव नहीं बल्कि प्रेम व आत्मीयता का भाव था ।

◆ दीवानजी ने नौकर को ढाढ़स बँधाते हुए कहा : “घर में चोरी हो जाय तो नौकर पर शक होना स्वाभाविक है पर तुम इस बात से अपने मन को बिल्कुल भी दुःखी मत करना । मुझे तुम पर बिल्कुल भी शक नहीं है । मुझे तो तुमसे माफी माँगनी चाहिए कि तुम्हें यह सब सहन करना पड़ा ।”

◆ दीवानजी के ऐसे निर्दोष नजरिये और ऊँचे भावों ने नौकर के हृदय पर गहरी चोट कर दी । उसकी अंतरात्मा उस पर लानत बरसाने लगी ।
वह अपने आपको रोक न सका और अत्यंत ग्लानि से ग्रस्त हो रोते-रोते पट्टणीजी के पैरों में गिर पड़ा और कहने लगा : “मालिक ! मैं आपके विश्वास का पात्र नहीं हूँ । मैंने ही गहने चोरी किये थे । मैंने आपसे विश्वासघात किया है । आप मुझ अपराधी को माफ मत कीजियेगा । आप मुझे फिर से जेल भेज दीजिये ।”

◆ नौकर पश्चात्ताप करते हुए फूट-फूट के रोने लगा । उसका अनायास हृदय परिवर्तन देख दीवानजी थोड़े शांत हो गये । डंडे के बल से भय दिखाकर किसी की बुराई को कुछ समय के लिए बदला जा सकता है किंतु शुद्ध प्रेम एवं आत्मदृष्टि तो व्यक्ति को सदा के लिए बदल देती है ।

◆ दीवानजी ने गम्भीर स्वर में कहा : “मुझे तुम पर संदेह नहीं था और न ही मैंने तुम पर कोई दबाव डाला फिर भी तुमने सच कहने की हिम्मत की । मैं तुम्हारी सच्चाई पर बहुत प्रसन्न हूँ ।”

उन्होंने नौकर को कुछ धन देते हुए कहा : “यह रख लो, मैं जानता हूँ कि तुम अपराधी नहीं हो । जरूर किसी परेशानी में आकर तुमने यह कदम उठाया होगा ।”
उसी क्षण उस नौकर ने जीवन में कभी चोरी न करने की कसम खा ली ।

सीख : अच्छे-बुरे सबकी गहराई में बसे अंतरात्मदेव के नाते सबसे सद्व्यवहार करना, इसमें बुरे-से-बुरे व्यक्ति के हृदय को भी परिवर्तित करने का सामर्थ्य है ।

~ लोक कल्याण सेतु / अगस्त 2017 / अंक 242 / पृष्ठ 18