पूज्य बापूजी की बचपन से ही ईश्वर-प्राप्ति की तड़प कितनी गजब की थी..! यह बच्चों को सुनाएँ,प्रभु भक्ति के संस्कार डालें।
पूज्य बापूजी का घर में अलग से एक छोटा-सा पूजा का कमरा था,जिसमें बापूजी 4 – 4:30 बजे स्नान आदि करके ध्यान भजन करने बैठ जाते और 9:30-10:00 तथा कभी-कभी तो 11:00 बजे बाहर निकलते फिर दूध पीते थे। तक करीब 10-11 वर्ष की उम्र रही होगी ।
भगवतध्यान,भगवन्नाम जप आदि में रुचि रखने वाले आसुमल का मन संसारिक खेल या मौज मस्ती में नहीं रमता था । इस नन्ही उम्र में अक्सर एक पीपल के पेड़ के नीचे या किसी शांत वातावरण वाले सात्विक स्थान पर घण्टों-घण्टों ध्यान में बैठे रहते थे।
इतने छोटे बालक को ध्यान में बैठे देख लोग आश्चर्य करते हुए कहते : ‘अरे यह किसका बच्चा है ? इतना छोटा बालक ! कितनी देर से बैठा है और कितना गहरा ध्यान लगा है! भक्ति का कैसा रंग लगा है अभी से !’
भगवन्नाम संकीर्तन के साथ प्रभातफेरी निकलती तो बालक आसुमल एक वाद्य बजाते हुए ईश्वरी मस्ती में खो जाते। जब सीताजी मंदिर में पूजा करने जाती तो मां पार्वती की फूल माला गिर पड़ती।
विनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मूरति मुसुकानी।।(रामायण)
देव-प्रतिमा से फूल गिरना ईश्वर की प्रसन्नता का संकेत माना जाता है । जब आसुमल मंदिर में जाते थे तो कभी-कभी देवमूर्ति से ईश्वरी प्रसन्नता के प्रकटीकरण के रूप में फूल या बेलपत्र गिर जाते थे,मानो वे बालक की साधना-भक्ति से प्रसन्न हो ।
~सीख : जो बचपन से ही भक्ति मार्ग पर चलते हैं उन पर भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं।
संकल्प – हम भी ईश्वर की भक्ति में अपना मन लगायेंगे।
– प्रश्नोत्तरी
बापूजी सबेरे कितने बजे ध्यान-भजन में बैठ जाते थे ?
~ऋषि प्रसाद/अप्रैल २०१८