- पूज्यश्री बचपन से ही अलौकिक योग्यताओं के स्वामी रहे हैं । सरलता, विनम्रता, दृढनिश्चयी व हँसमुख स्वभाव, कुशाग्र बुद्धि, जिज्ञासा वृत्ति, माता-पिता व संत सेवा जैसे सद्गुण बचपन में ही बापूजी के जीवन में खिलने लगे थे । पुत्र में दिखा पिता को ईश्वर नूर अम्माजी कहती थीं कि “साँई (पूज्य बापूजी) के पिताजी ने मुझे साफ कह रखा था कि “किन्हीं संत या गरीब को दान देकर ही भोजन बनाना ।”
- तो इस नियम का मैं पहले भी पालन करती थी और बाद में भी करती रही । संतसेवी, दानी, धर्मात्मा व उदार हृदय के धनी माता-पिता के घर पूज्य बापूजी जैसे महान संत का अवतरण हुआ । पूज्यश्री अवतरण के समय बहुत गोरे थे तो सब लोग आपको ‘भूरा’ कहकर पुकारते थे । एक दिन पिता पूज्य थाऊमलजी ने उँगलियों पर कुछ गणना करके अम्माजी से कहा : “भूरा नाम ठीक नहीं है, इसका नाम ‘आसु’ रखेंगे । यह कोई दिव्यात्मा है, यही बेटा तुम्हारा मंगल करेगा । पहले इसको खिलाना फिर तुम खाना, इसको खिलाये बिना मत खाना ।”
- मानो पिताजी को भी बालक आसुमल ईश्वरीय नूर में के दर्शन हो गये थे थाऊमल द्वारा दिये गये इस निर्देश को अम्माजी ने नियम बना लिया था। पिताजी की भविष्यवाणी आखिर सच साबित हुई। पूज्य बापूजी के द्वारा अम्माजी को साधनामय आध्यात्मिक जीवन का बहुत ऊँचा लाभ मिला । आखिर में शोक, दुःख, मोह की दलदल से परे मोक्ष सुख का परम लाभ भी मिला। अम्माजी थाऊमलजी को कभी कुछ खाने हेतु बना के देती थीं तो वे पूछते थे कि “आसु ने खाया कि नहीं ?”
- श्री थाऊमलजी के शरीर छोड़ने के एक-दो दिन पूर्व की बात है, जब उनको भोजन दिया गया तो उन्होंने यही पूछा : “आसु को दिया कि नहीं ?”
- “नहीं, बाहर गया है, आयेगा तो दे देंगे ।”
- “नहीं, पहले उसे बुलाओ और दो फिर खाऊँगा ।”
- पिताजी जान चुके थे कि बालक आसु के रूप में हमारे यहाँ साक्षात् परब्रह्म-परमात्मा ने ही लोकोद्धार के लिए अवतार लिया है इसलिए वे अपने इन पुत्र का बहुत आदर करते थे । ‘श्री आशारामायणजी’ में उनके वचन हैं :
पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम ।
लोगों के तुमसे सदा, पूरण होंगे काम ।।
- – ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2018