Shri Vallabhacharya Jayanti 2023
- बूला मिश्र का जन्म लाहौर के एक सारस्वत ब्राह्मण के घर हुआ था । 10 वर्ष की उम्र में वह शास्त्राध्ययन के लिए काशी गया ।
- उसे 3 साल तक पढ़ाने के बाद उसके आचार्य ने कहा : ‘‘मैंने कई विद्यार्थियों को पढ़ाया परंतु तेरे जैसा ठूँठ मैंने आज तक नहीं देखा । लगता है तेेरे भाग्य में विद्या है ही नहीं । मैं अब तुझे नहीं पढ़ा सकता ।’’
- बूला मिश्र ने संकल्प किया कि ‘जब तक मुझे विद्या प्राप्त नहीं होगी, तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा ।’
- गंगा-किनारे जाकर वह 3 दिन तक भूखा-प्यासा बैठा रहा ।
- बालक की तपस्या से माँ सरस्वती प्रकट हुईं, बोलीं : ‘‘वत्स ! तेरे भाग्य में विद्या नहीं है । परंतु तू भगवान का भजन कर, उनकी कृपा से तू अवश्य विद्यावान हो जायेगा ।’’
- बूला मिश्र बोला : ‘‘मैं अब तक आपके लिए तड़प रहा था तो अब भगवान के लिए तड़पूँगा ।’’ अब वह वहीं बैठकर पूरी श्रद्धा से भगवन्नाम-जप करने लगा । भगवान प्रसन्न हुए, सरस्वतीजी को भेजा ।
- बूला मिश्र बोला : ‘‘आपने तो कहा था कि ‘तेरे भाग्य में विद्या नहीं है’, अब क्या हुआ ?’’
- सरस्वतीजी : ‘‘सच्चे मन से भगवन्नाम का जप करने से भगवान तुझ पर प्रसन्न हुए हैं और तेरे भाग्य के कुअंक मिट गये हैं ।’’
- ‘‘भगवान की प्रसन्नता से जब भाग्यहीन का भाग्य बदल सकता है तो अब मुझे विद्या नहीं चाहिए, मैं भगवान को ही पाऊँगा ।’’
- पाँच दिन निकल गये थे । बूला मिश्र ने जल तक नहीं लिया । उसके दृढ़ संकल्प व सच्ची तड़प से प्रसन्न होकर भगवान ने साकाररूप में दर्शन दिये,
- भगवान बोले : ‘‘वत्स ! मेरे दर्शन का परम फल यही है कि जीव अपने आत्मस्वरूप में जग जाय, आत्मविश्रांति पा ले । परंतु गुरुकृपा के बिना यह सम्भव नहीं है । मैं भी जब अवतार लेकर आता हूँ तो मुझे भी ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु की शरण में जाना पड़ता है । अतः तू अडेल जा, वहाँ तुझे वल्लभाचार्यजी मिलेंगे ।’’
- बूला मिश्र प्रसन्नतापूर्वक भोजन करके अडेल पहुँचा । वहाँ वल्लभाचार्यजी (Shri Vallabhacharya) को देखते ही दंडवत् पड़ गया । आचार्य श्री प्रसन्न होकर बोले : ‘‘तू धन्य है ! तूने दृढ़ हरिभक्ति से भगवान को भी प्रकट कर दिया ।’’
- बूला मिश्र : ‘‘गुरुदेव ! भगवान के दर्शन तो हो गये परंतु भगवत्स्वरूप के आनंद का अनुभव तो नहीं हुआ । इसीलिए मैं आपकी शरण में आया हूँ, मुझे स्वीकार कीजिये ।’’
- उसकी निष्ठा और विवेक देखकर वल्लभाचार्यजी (Shri Vallabhacharya) ने उसे मंत्रदीक्षा दी । जिस बूला मिश्र को अक्षरज्ञान तक नहीं था, वह गुरुमंत्र के जप और गुरुसेवा से वेद-शास्त्रों के ज्ञान में निपुण व अलौकिक अनुभवों का धनी होने लगा ।
- ईश्वरप्राप्ति की तीव्र तड़प और गुरुजी की कृपा से शीघ्र ही बूला मिश्र को ईश्वर-तत्त्व का साक्षात्कार हो गया ।
- बूला मिश्र तो विद्या पाने के लिए घर से निकला था, तितिक्षा सही, बहुत कष्टदायक लम्बी यात्रा के बाद भगवान के दर्शन हुए, भगवान प्रसन्न हुए तब उसे गुरु मिले और भगवान के तत्त्व का साक्षात्कार हुआ । परंतु जो सीधे ऐसे हयात ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों को खोजकर उनकी शरण में पहुँच जाते हैं, उनके सौभाग्य का तो कहना ही क्या ! और जो ऐसे महापुरुषों के वचनों में अडिग श्रद्धा करके बूला मिश्र से भी सरलता से आत्मानुभव कर लेते हैं, ऐसे सौभाग्यशालियों को तो आपके-हमारे प्रणाम हैं !
नानक सतिगुरि भेटिऐ पूरी होवै जुगति ।
हसंदिआ खेलंदिआ पैनंदिआ खावंदिआ विचे होवै मुकति ।।
( गुरुग्रंथ साहिब )
- उन महादुर्लभ ब्रह्मज्ञानी सद्गुरुओं का बड़ा उपकार है । ब्रह्मज्ञान से सर्वथा अनजान लोग, जो संसारी छोटी-छोटी चाहें और मान्यताएँ लेकर उनके पास आते हैं, उन्हें भी ये करुणावान महापुरुष हँसते-खेलते, खाते-पहनते आत्मज्ञान का खजाना देकर मुक्ति-मार्ग की यात्रा कराते हैं ।
- – लोक कल्याण सेतु, अगस्त 2013