Sant Tukaram Story in Hindi/ Marathi : संत तुकाराम जी के साथ तो कितना घोर अन्याय किया था निंदकों ने !
शिवबा कासर जो पहले तुकाराम जी की निंदा करता था, बाद में उनका भक्त बन गया है और एक दिन उसने उन्हें अपने घर भजन के लिए बुलाया। पति को संत का रंग लगता देख उसकी दुष्ट पत्नी ने साजिश रची ।
जब तुकाराम जी उनके घर पहुंचे तो उनसे स्नान का आग्रह किया गया । जब वे स्नान के लिए चौकी पर बैठे तो उस कुलटा ने उनकी पीठ पर उबलता हुआ पानी डाल दिया ।
तुकाराम जी प्रभु से प्रार्थना करने लगे कि तुम ही संभालना विट्ठल !
उबलता हुआ पानी तो डाला गया तुकाराम जी की पीठ पर लेकिन फफोले निकले शिवबा कासर की पत्नी की पीठ पर ।
इलाज करते करते थके पर कोई लाभ नहीं हुआ। तब किसी ने कहा : “हो सके तो संतों के दैवी कार्यों में सहभागी होकर अपना भाग्य बना लो अगर भाग्य नहीं बनाना है तो निंदक होकर दुर्भाग्य को क्यों आमंत्रण देते हो ! अब उन्हीं तुकाराम जी महाराज के श्री चरणों में प्रार्थना करो । उन्हें पवित्र गंगा जल से स्नान करवाओ और स्नान के समय जमीन पर पानी पड़ने से जो मिट्टी गीली हो जाएगी वह फफोलो पर लगाओ तब काम बनेगा ।”
शिवबा कासर ने तुकाराम जी से प्रार्थना की और जब तुकाराम जी ने स्नान से गिली हुई मिट्टी उस कुलटा ने पीठ पर लगाई तब उसके फफोले मिटे ।
‘श्रीरामचरितमानस’ के उत्तरकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदासजी ने काकभुशुण्डिजी के श्रीमुख से कहलवाया है कि :
पर उपकार बचन मन काया ।
संत सहज सुभाउ खगराया ।
संत सहहिं दुख पर हित लागी ।
पर दुख हेतु असंत अभागी ।।
भूर्ज तरू सम संत कृपाला ।
पर हित निधि सह विपति विशाला ॥
हे पक्षिराज गरुड़ ! मन, वचन और शरीर से परोपकार करना यह संतों का सहज स्वभाव है । संत दूसरों की भलाई के लिए दुख सहते हैं और अभागे दुर्जन दूसरों को दुःख पहुँचाने के लिए ।
कृपालु संत भोज के वृक्ष के समान दूसरों के लिए भारी विपत्ति सहते हैं ।’ (उ.की. १२०. ७-८)
➢ ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2008