- आत्मनिष्ठ महापुरुष बड़े विलक्षण होते हैं । उनको कोई बात जँच जाती है तो स्वाभाविक ही उनसे उस बात की पुनरावृत्ति होती रहती है । जैसे नारायण बापू को जब मौज आती तो कह उठते : ‘हे प्रभु ! दया कर ।’
- भगवत्पाद स्वामी श्री श्री लीलाशाहजी बापू कहते : ‘हे भगवान ! सबको सद्बुद्धि दो… शक्ति दो… आरोग्यता दो… हम अपने-अपने कर्तव्य का पालन करें और सुखी रहें।’ एक महात्मा बात-बात में कह उठते : ‘सब रघुनाथजी की लीला है । वे बड़े लीलामय हैं।’ दूसरे महात्मा बोला करते थे : ‘अच्छा हुआ, भला हुआ ।’ एक अन्य महात्मा बात-बात में कहा करते थे : ‘यार की मौज !’
- ऐसे ही एक फक्कड़ महात्मा किसी गाँव के बाहर वृक्ष के नीचे बैठे थे । दिखने में हट्टे-कट्टे थे । महात्मा बोले जा रहे थे : ‘वाह, क्या बात है ! अगली भी कुछ नहीं, पिछली भी कुछ नहीं, कुर्बान जावाँ बिचली पे ।’
- उसी समय वहाँ से तीन युवतियाँ जा रही थीं । बीच वाली युवती ने सोचा, ‘ये महात्मा क्या बोलते हैं !’ महात्मा अपनी ही मस्ती में मस्त होकर वही वाक्य दोहराये जा रहे थे । उस बिचली नवविवाहिता सुंदरी ने जाकर अपने पति को बोला कि ‘साधु ऐसा-ऐसा बोल रहे थे ।’ अगली युवती ने भी पुष्टि कर दी, पीछे वाली ने भी पुष्टि कर दी ।
- गाँव के लोग आये, बोले : ‘‘अरे बाबा, क्या बोलते हो !”
- बाबाजी बोले : ‘‘अरे, क्या बोल रहा हूँ !
- अगली भी कुछ नहीं यार, पिछली भी कुछ नहीं, बलिहारी बिचली की !”
- उनमें जो बिचली का पति था वह बोला : ‘‘बिचली तो मेरी पत्नी थी ।”
- ‘‘अरे चल ! बिचली तो सबकी है ।”
- ‘‘ऐ बाबा ! क्या बोलते हो ?”
- एक बुजुर्ग ने कहा : ‘‘बाबा की बात को समझना पड़ेगा । बाबा ! बिचली माने क्या ?”
- ‘‘अरे ! बिचली सबकी है, किसीने सँभाली तो सँभाली, नहीं तो गयी हाथ से ।”
- ‘‘बाबा ! कौन-सी बिचली ? बिचली तो इसकी औरत थी ।”
- ‘‘इसकी औरत ! कौन-सी बिचली ? वह तो सभी की है ।”
- ‘‘बाबा ! ऐसा मत बोलो ।”
- ‘‘अरे, चोरी का माल है क्या ! बिचली तो सबकी होती है ।”
- ‘‘बाबा ! हम लोग कुछ समझे नहीं ।”
- बाबा बोले : ‘‘अगली कुछ नहीं अर्थात् बचपन की जिंदगी बेवकूफी में गुजर जाती है । पिछली भी कुछ नहीं अर्थात् बुढ़ापे में शरीर साथ नहीं देता, न योग करने का सामर्थ्य, न ध्यान-भजन होता है । बिचली है जवानी ! उसी में निष्काम कर्म करो, जप करो, ध्यान करो, अपने को खोजो, अपने आत्मा को पाओ, अपने ‘मैं को खोजो । इसीलिए बोलता हूँ बिचली तो बिचली है !
ज्यों केले के पात में, पात पात में पात ।
त्यों संतन की बात में, बात बात में बात ।।