- खीर को ‘ रसराज ‘ कहते हैं ।
- सीता जी को अशोक वाटिका में रखा गया था । रावण के घर का तो क्या खायेंगी सीताजी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे ।
- खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो , आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं , असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे । लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्व भी उसमें आ जायेगा ।
- इलायची , खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम , काजू , पिस्ता , चारोली ये रात को पचने में भारी पडेंगे ।
- रात्रि 8 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 11 बजे के आसपास भगवान को भोग लगा के प्रसाद रूप में खा लेनी चाहिए । लेकिन देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम खाना और खाने से पहले एकाध चम्मच मेरे हवाले भी कर देना । मुँह अपना खोलना और भाव करना : ‘ लो महाराज ! आप भी लगाओ भोग ।’ और थोड़ी बच जाय तो फ्रिज में रख देना । सुबह गर्म करके खा सकते हो ।
~ (खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती ।)