दिवाली की रात को छोटे स्वभाव के लोग पटाखे फोड़कर ही खुश हो जाते हैं । उससे तो प्रदूषण बढ़ता है लेकिन जो समझदार हैं वे पटाखे में ही खुश नहीं हो जाते, वे तो प्रीतिपूर्वक भगवान का भजन-सुमिरन करते हैं ।
जो भगवान को प्रीतिपूर्वक भजता है उसको वे बुद्धियोग देते हैं । बुद्धि तो सबके पास है, बुद्धि में भगवत्सुख, भगवत्-शांति का योग देते हैं – ‘समय की धारा को जो जानता है वह चैतन्य आत्मा ‘मैं’ हूँ । सुख-दुःख को, बीमारी-तंदुरुस्ती को जो जानता है वही आत्मा चैतन्य ‘मैं’ हूँ और परमात्मा का अविनाशी अंश हूँ । ॐ ॐ आनंद… ॐ ॐ शांति… ॐ ॐ माधुर्य…’
नूतन वर्ष
वर्ष प्रतिपदा के दिन सत्संग के विचारों को बार-बार विचारना । भगवन्नाम का आश्रय लेना ।
दीपावली की रात्रि को सोते समय यह निश्चय करेंगे कि ‘कल का प्रभात हमें मधुर करना है ।’ वर्ष का प्रथम दिन जिनका हर्ष-उल्लास और आध्यात्मिकता से जाता है, उनका पूरा वर्ष लगभग ऐसा ही बीतता है । सुबह जब उठें तो ‘शांति, आनंद, माधुर्य… आधिभौतिक वस्तुओं का, आधिभौतिक शरीर का हम आध्यात्मिकीकरण करेंगे क्योंकि हमें सत्संग मिला है, सत्य का संग मिला है, सत्य एक परमात्मा है । सुख-दुःख आ जाय, मान-अपमान आ जाए, मित्र आ जाय, शत्रु आ जाए, सब बदलनेवाला है लेकिन मेरा चैतन्य आत्मा सदा रहने वाला है ।’ – ऐसा चिंतन करें और श्वास अंदर गया ‘सोऽ…’, बाहर आया ‘हम्…’, यह हो गया आधिभौतिकता का आध्यात्मिकीकरण, अनित्य शरीर में अपने नित्य आत्मदेव की स्मृति, नश्वर में शाश्वत की यात्रा ।
सुबह उठकर बिस्तर पर ही बैठकर थोड़ी देर श्वासोच्छ्वास को गिनना, अपना चित्त प्रसन्न रखना, आनंद उभारना ।
भाईदूज
यह भाई-बहन के निर्दोष स्नेह का पर्व है । बहन को सुरक्षा और भाई को शुभ संकल्प मिलते हैं । यमराज ने अपनी बहन यमी से प्रश्न किया : ‘‘बहन ! तू क्या चाहती है ? मुझे अपनी प्रिय बहन की सेवा का मौका चाहिए ।’’
यमी ने कहा : ‘‘भैया ! आज वर्ष की द्वितीया है । इस दिन भाई बहन के यहाँ आये या बहन भाई के यहाँ पहुँचे और इस दिन जो भाई अपनी बहन के हाथ का बना हुआ भोजन करे वह यमपुरी के पाश से मुक्त हो जाए ।’’
यमराज प्रसन्न हुए कि ‘‘बहन ! ऐसा ही होगा ।’’
भैया को भोजन कराते है तो उसमें स्नेह के कण भी जाते हैं । मशीनों द्वारा बने हुए भोजन में और अपने स्नेहियों के द्वारा बने हुए भोजन में बहुत फर्क होता है ।