सामान्य दृष्टि से सन्ध्या माने दो समयों का मिलन और तात्विक दृष्टि से सन्ध्या का अर्थ है जीवात्मा और परमात्मा का मिलन । ‘सन्ध्या’ जीव को स्मरण कराती है उस आनंदघन परमात्मा का, जिससे एकाकार होकर ही वह इस मायावी प्रपंच से छुटकारा पा सकता है ।
सूर्योदय, दोपहर के १२ बजे एवं सूर्यास्त इन तीनों वेलाओं से पूर्व एवं पश्चात् १५-१५ मिनट का समय सन्ध्या का मुख्य समय माना जाता है । इन समयों में सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुला रहता है, जो कि कुंडलिनी -जागरण तथा साधना में उन्नति हेतु बहुत ही महत्त्वपूर्ण है ।
सन्ध्या के समय ध्यान, जप, प्राणायाम आदि करने से बहुत लाभ होते हैं, जिनमें से कुछ हैं :
१. नित्य नियमपूर्वक सन्ध्या करने से चित्त की चंचलता समाप्त होती है । धीरे-धीरे एकाग्रता में वृद्धि होती है ।
२. भगवान के प्रति आस्था, प्रेम, श्रद्धा, भक्ति और अपनापन उत्पन्न होता है ।
३. अंतर्प्रेरणा जाग्रत होती है, जो जीव को प्रति पल सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा देती है ।
४. अंतःकरण के जन्मों-जन्मों के कुसंस्कार जलने लगते हैं व समस्त विकार समाप्त होने लगते हैं ।
५. मुख पर अनुपम तेज, आभा और गम्भीरता आ जाती है ।
६. वाणी में माधुर्य, कोमलता और सत्यता का वास हो जाता है ।
७. मन में पवित्र भावनाएँ, उच्च विचार एवं सबके प्रति सद्भाव आदि सात्विक गुणों की वृद्धि होती है ।
८. संकल्प-शक्ति सुदृढ़ होकर मन की आंतरिक शक्ति बढ़ जाती है ।
९. हृदय में शांति, संतोष, क्षमा, दया व प्रेम आदि सद्गुणों का उदय हो जाता है और उनका विकास होने लगता है ।
१०. प्रायः मनुष्य या तो दीनता का शिकार हो जाता है या अभिमान का । ये दोनों ही आत्मोन्नति में बाधक हैं । सन्ध्या से प्राप्त आध्यात्मिक बल के कारण संसार के प्रति दीनता नहीं रहती और प्रभुकृपा से बल प्राप्त होने से उसका अभिमान भी नहीं होता ।
११. प्रातःकालीन सन्ध्या से जाने-अनजाने में रात्रि में हुए पाप नष्ट हो जाते हैं । दोपहर की सन्ध्या से प्रातः से दोपहर तक के तथा सायंकालीन संध्या से दोपहर से शाम तक के पापों का नाश हो जाता है । इस प्रकार त्रिकाल सन्ध्या करने वाला व्यक्ति निष्पाप हो जाता है ।
१२. सन्ध्या करते समय जो आनंद प्राप्त होता है, वह वर्णनातीत होता है । हृदय में जो रस की धारा प्रवाहित होती है, उसे हृदय तो पान करता ही है, प्रायः सभी इन्द्रियाँ तन्मय होकर शांति-लाभ भी प्राप्त करती हैं ।
१३. सन्ध्या से शारीरिक स्वास्थ्य में भी चार चाँद लग जाते हैं । सन्ध्या के समय किये गये प्राणायाम सर्वरोगनाशक महौषधि हैं ।
१४. त्रिकाल सन्ध्या करने वाले को कभी रोजी रोटी के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती ।
१५. सन्ध्या से सर्वांगीण उन्नति होने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं । इसलिए सच्ची उन्नति के लिए आज से ही त्रिकाल सन्ध्या करने का नियम लेना चाहिए ।
– लोक कल्याण सेतु, जुलाई-अगस्त 2006