Sant Charandas Ji Maharaj Story in Hindi:
- { मनुष्य जीवन वह सुंदर महल है जिसमें बहुत घना अँधेरा छाया हुआ है और गुरुदीक्षा एवं गुरुज्ञान के दीपक बिना वह विकार-वासनाओं, दुःख-शोक से भरा बड़ा भयावह हो जाता है, दुःखदायी हो जाता है । }
- एक दिन संत चरणदासजी महाराज (Sant Charandas) दिल्ली में यमुना किनारे सत्संग कर रहे थे । उसी समय घोड़े पर सवार वह रूपवान किशोर अपने साथियों के साथ वहाँ से गुजरा तो सहसा संत की नजर उस पर पड़ी ।
- संत मुस्कराते हुए बोले: “महल तो सुंदर है पर है बिना दीपक का ।”
- ये शब्द किशोर के मर्मस्थल में जा चुभे । वह घोड़े से उतरा और दंडवत् प्रणाम कर उनके सम्मुख बैठ गया । विनम्रतापूर्वक बोला : “महाराज ! मैं नहीं समझा । कृपा कर बतायें कि दीपक क्या है ? उसका महत्व क्या है ?”
- “वत्स ! दीपक भगवन्नाम और गुरुज्ञान है । सुंदर शरीर हो, श्रेष्ठ कुल हो, श्रेष्ठ आचरण हो पर यदि भगवन्नाम और गुरुप्रदत्त आत्मज्ञान न हो तो वह सब बेकार है । भगवान आत्मरूप से तुम में और चराचर सभी जीवों में व्याप्त हैं तथा भगवान का नाम भगवान से अभिन्न है ।”
- निर्मल हृदय किशोर बड़े विस्मय से बोला : “तो संतजी ! क्या मेरे घोड़े में भी भगवान हैं ?”
- “हाँ बेटा ! निःसंशय !”
- किशोर सहज भाव से बोला: “ऐसा संतजी ! क्या आप मेरे घोड़े से प्रभुनाम बुलवा सकते हैं ?”
ब्रह्मनिष्ठ संत समर्थ होते हुए भी प्रायः चमत्कार दिखाने में रुचि नहीं रखते । यह सारी दुनिया उन्हें केवल एक सपने जैसी लगती है । स्वाभाविक है, सपने को सपना जानने वाला कोई उसमें कुछ कर्तब कर दिखाने की इच्छा क्यों करेगा ? किंतु संत जब अपनी अलमस्ती में होते हैं तब अथवा किसी श्रद्धालु या निर्मल मन वाले की ईश्वर के प्रति आस्था सुदृढ़ करने के लिए उनके द्वारा चमत्कार हो जाते हैं । - किशोर की निखालिसता देखकर संत चरणदासजी का हृदय छलका और उनकी दृष्टि घोड़े की ओर मुड़ी… “बेटा ! कृष्ण नाम कहो ।”
- घोड़े की आँखों में चमक आ गयी । उसके मुख से उच्च स्वर में ध्वनि हुई : कृष्ण… ! कृष्ण… !! कृष्ण… !!!
- किशोर स्तब्ध हो देखता ही रहा । उसका मन थम गया । अब उसका संशय जाता रहा । उसने तत्काल चरणदासजी के चरणों में गिर के आत्मसमर्पण कर दिया ।
- किशोर के माता-पिता को यह बात पता चली तो वे आकर उसे समझाने लगे । किंतु अब किशोर जान चुका था कि मनुष्य जीवन वह सुंदर महल है जिसमें बहुत घना अँधेरा छाया हुआ है और गुरुदीक्षा एवं गुरुज्ञान के दीपक बिना वह विकार-वासनाओं, दुःख-शोक से भरा बड़ा भयावह हो जाता है, दुःखदायी हो जाता है ।
- पुत्र की दृढ़ता देख माता-पिता उसे गुरुचरणों में रखकर घर चले गये । चरणदासजी ने उसे दीक्षा दी और नाम रखा गुरुछौना । तत्पश्चात् सद्गुरु ने उन्हें ज्ञान, भक्ति व योग की साधना करायी । गुरुछौनाजी ने कुछ ही दिनों में पूर्ण गुरुकृपा पा ली । गुरुदेव ने उन्हें आज्ञा की कि अब वे औरों को भी उस परम रसमय प्रभु-प्रसाद का स्वाद चखायें और लोक-मांगल्य के लिए विचरण करें ।
~ लोक कल्याण सेतु / मार्च 2018