काकचेष्टा बकध्यानं, श्वाननिद्रा तथैव च ।
स्वल्पाहारी ब्रह्मचारी, विद्यार्थी पंचलक्षणम् ।।
- काकचेष्टा :- जैसे कौआ हरेक चेष्टा में इतना सावधान रहता है कि उसको कोई जल्दी पकड़ नहीं सकता, ऐसे ही विद्यार्थी को विद्याध्ययन के विषय में हर समय सावधान रहना चाहिए । एक-एक क्षण का ज्ञानार्जन करने में सदुपयोग करना चाहिए ।
- बकध्यान :- जैसे बगुला पानी में धीरे से पैर रखकर चलता है, उसका ध्यान मछली की ओर ही रहता है । ऐसे ही विद्यार्थी को खाना-पीना आदि सब क्रियाएँ करते हुए भी अपनी दृष्टि, ध्यान विद्याध्ययन की तरफ ही रखना चाहिए ।
- श्वाननिद्रा :- जैसे कुत्ता निश्चिंत होकर नहीं सोता, वह थोड़ी-सी नींद लेकर फिर जग जाता है, नींद में भी सतर्क रहता है, ऐसे ही विद्यार्थी को आरामप्रिय, विलासी होकर नहीं सोना चाहिए, अपितु केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से यथोचित सोना चाहिए ।
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- स्वल्पाहारी :- विद्यार्थी को उतना ही आहार लेना चाहिए जितने से आलस्य न आये, पेट याद न आये क्योंकि पेट दो कारणों से याद आता है – अधिक खाने से और भुखमरी करने से ।
- ब्रह्मचारी :- विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए । आश्रम से प्रकाशित, ʹदिव्य प्रेरणा प्रकाश, प्रेरणा ज्योत, निरोगता का साधन, अपने रक्षक आप, तू गुलाब होकर महक, आदि पुस्तकों के कुछ पन्ने रोज पढ़ने चाहिए व अपने जीवन को तदनुसार बनाने प्रयत्न करना चाहिए । ये पुस्तकें विद्यार्थियों के भावी जीवन को महानता के सदगुणों से भरने में सक्षम हैं ।
- कौन से सदगुण विद्यार्थी को महान बनाते हैं ?
- क्रियाकलाप : आप अपने में जो सदगुण लाना चाहते हैं, उसे एक कागज पर लिखकर दीवार पर ऐसी जगह चिपकायें जहाँ आपकी रोज नजर जाती हो । उसे अपने भीतर लाने का दृढ़ संकल्प करें ।